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( ७३ ) कोई परिणमनशील पदार्थ ही होना चाहिये। अतः इसने यह निश्चय किया कि वह परिणमनशील पदार्थ अग्नि ही हो सकता है। अतएव उसने अमिको ही संसारका मूल कारण माना। यह दार्शनिक जगत्को नित्य भी मानता था ।
पारमेनिडीज-इस दार्शनिक मत से संसार सत्स्वरूप है, न इसका आदि है और न अन्त । इसके मत से जहां कालकी अपेक्षा जगन् नित्य है वहां देशकी अपेक्षा जगत अनन्त भी है। अर्थात् ऐसा कोई स्थान या आकाश नहीं है जहां यह ससार न हो। ____ क्सेनोफेन-सर्व प्रथम यूनानमें सेनोनने ही देवतावादका विरोध किया, इसने कहा कि लोग विश्वास करते हैं, कि देवना भी उसी तरह अस्तित्व में आय है कि हम ! और देवताकि पास भी इन्द्रियां, वाणी और काया है। उपयुक्त दार्शनिकका कहना था कि यदि पशुओंके भी वाणी और कल्पना शक्ति होती तो वे भी देवताओं की कल्पना करते । प्रत्येक पशुका अपना ( अपने ही आकार का ) देवता होता। जिस प्रकार मनुष्योंने अपने अपने वर्णानुसार अपने २ देवता बनाये हैं वैसे ही पशु भी बनाते । तात्पर्य यह कि यहांसे यूनानादिदेशोंमें देवसावादका द्वास प्रारम्भ हुआ, और वहां दार्शनिक विचारों का प्रचार बढ़ता गया।
पिथागोरस---यह यूनान का महान दार्शनिक माना जाता है। कहते हैं यह भारत में आया था, शायद यहाँ इस को उपनिषदों का उपदेश प्राप्त हुश्रा हो। इसी ने यूनानमें आत्मवाद का प्रचार किया. इसका कथन था कि अग्नि आदि जगत के पदार्थ नहीं है । सथा उनका परमाणु ही मूल तत्व हैं। यह आकृति को ही मूल माना था तथा प्रात्मा को और पुनर्जन्म को भी मानता था। जिस प्रकार भारत में शब्द ब्रह्म की स्थापना हुई उसी प्रकार इसने