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( ७०२ ) माथ साथ रहने वाले ( सध्रीचीना ;, यातेव इधर उधर फिरने वाले. बुद्धिका विस्तार करते थे (वितन्याथे धियोः) यह लिखा ।" __ सूर्य तथा चन्द्र, या शिव तथा शक्ति, या आदम तथा हव्वा को फलों के द्वारा प्रकट करना बेचिलिमीया आदि प्रदेशोंमें एक प्रथा सी बन गई थी 1 वेद मन्त्रोंके रचयिता इस प्रथासे अनभिज्ञ न थे। बहुत संभव है वे स्वयं ही इस प्रथाके जन्मदाता रहे हो" यही नहीं अपितु आपने इस लेख मालामें. उन देशोंमें प्रचलित प्राचीन देव मूर्तियोंसे वेद मन्त्रों में वर्णित देव स्तुतियोंके चित्र देकर यह सिद्ध कर दिया है कि वैदिक तथा ये देवता एक ही हैं । वहां प्रचलित प्राचीन देवोंसे वैदिक देवताओंकी समानताका कथन
आपने शब्दशः विया है। इस विषयमें ग्रह लेख बहुत ही उपयोगी गवेषणापूर्ण एवं तात्विक है। अभिप्राय यह है कि उस समय पश्चिममें बहुदेववादका साम्राज्य था। उसके पश्चात् अनुमानतः २५०० वर्ष पहले यूनानमें तीन दार्शनिक हुये-(1) ओलीज, (२) एनेक्समेण्डर (३) एनेक्समेनीज |
इन सबके सन्मुख एक मात्र प्रश्न यह था कि इस जगतका मूल तत्व क्या है ? उस समय तक संसारमें ईश्वरका आविष्कार नहीं हुआ था, और न पनिसमें श्रात्मज्ञानका ही उस समय तक उदय हुआ था । अतएव इनके मनमें ईश्वर या आत्माके लिये कोई प्रश्न ही न था। अतः थेलीजने तो निश्चय किया कि इस संसारका मूल सत्व जल है, कनेक्स मेएडरके मत्तसे एक अनियत द्रव्य ही इस संसारका मूल कारण निश्रित हुआ तथा एनक्समे नौजने वायुको ही संसारका मूल कारण बताया । ये सब सिद्धांत भारत में भी प्रचलित थे, जिनका वर्णन पहले हो चुका है। इसके पश्चात् हेरैलीट्स-नामक एक दार्शनिकने कहा कि प्रत्येक क्षश प्रत्येक पदार्थमें परिणमन होता रहता है. अतः विश्वका मूलकारण