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________________ ( ७०१ ) 6 है । न ईश्वर जगतको उप करना लो दशा में उसको जगर का कर्त्ता कहना उतना ही उचित होगा जितना पानीके नदी या आगको जलनका कर्ता कहना । कर्तृवका व्यपदेश वहीं हो सकता है जहाँ संकल्प की स्वतन्त्रता हो। यह काम करूं या न करूं, स्वभाव से इस प्रकार के स्वतन्त्रता के लिये स्थान नहीं रहता । अतः यह सब तर्क ईश्वर के अस्तित्वको सिद्ध नहीं करते।" आदिर श्री सम्पूर्णानन्द जी ने इसी प्रकार इस पुस्तक में तथा दर्शन और जीवन में ईश्वर की मान्यता का शतशः प्रबल युक्तियों द्वारा खंडन किया है। हम आगे तर्कवाद में उन युक्तियों का खंडन करेंगे जो कि ईश्वर पक्ष में दी जाती हैं। यहां तो वैदिक प्रमाणों की परीक्षा करनी है। अतः यह सिद्ध है कि नासदीय सूक्त में आत्यन्तिक प्रलय का कथन श्री सम्पूर्णानन्द जी को स्वीकार नहीं है। तथा च न वे किसी ईश्वरको कर्त्ता मानते है । वे स्वतन्त्र विचारक होते हुये भी शङ्कर के अनुयायी प्रतीत होते हैं । पाश्चात्य - दर्शन आज से तीन हजार वर्ष पहले पश्चिम (यूनान, मिश्र आदि ) में अनेक देववादका हो प्रचार था। उनके देवता भी वैदिक देवतायोंकी तरह ही शक्तिशाली और सर्व दैविक गुणोंसे युक्त थे । गुरुकुल कांगड़ी के स्नातक प्रोः प्राणनाथजीने नागरी प्रचारिणी पत्रिका वैदिक देवताओंका तथा ईरान मिश्र आदि देशों में प्रचलित प्राचीन देवताओंका बहुत सुन्दर मिलान किया है। आपने स्पष्ट लिखा है कि- ऋग्वेदके ऋषिके सन्मुख, बाईबिलकी आदम हवा तथा सांप के सदृश कोई प्राचीन उत्पत्तिकी गाथा अवश्य ही रही होगी, कारण उसने बिना वस्त्रोंमें रहने वालोंकी तरह ( बाप से ). ..
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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