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________________ और हमारी विद्या की आवश्यकता थी और हमें रुपये की आवश्यकता थी । हमने रुपया लेकर विद्या और समय दे दिया जिस प्रकार एक के पास गेहूं है और दूसरे के पास घी उन्हों ने आपस में आदान प्रदान कर लिया। दोनों का काम चल गया इस में फल घों है या गेहूँ ! इसी प्रकार चोरी और कारागार में भी कम और फलका संपन्ध नहीं है,। एक व्यक्ति साधारण प्रजामें रह कर अव्यवस्था उत्पन्न कर रहा था। जिसके ऊपर व्यसभा की जिम्मेदारी श्री उस ने वहां से उस व्यक्ति को हटा कर एक पृषक जगह रख दिया। जिम प्रकार कमरे में कोई ( वस्तु अड़चन पैदा कर रही हो तो मकान वाला उस को दूसरी जगह रख दे तो क्या इस को कम का फल कहा जायगा । असल बात तो यह है कि कमों का फल प्रदाता ईश्वरको सिद्ध करने के लिये इस प्रकार को वारजाल रचा जाता है। श्रागे श्राप कम को फल का निमित्त कारण मानते हैं उपादान कारण नहीं । यदि फल का निमित्त कारण कम है तो ईश्वर क्या अन्यथा सिद्ध कारण है और यदि कम निमिस कारण है. तो फल का उपादान कारण क्या है यह आपने बताने का कष्ट क्यों नहीं किया । क्या इस लिए कि उससे आपका बनाया हुआ यह बालू का महल उम की हवा के थपेड़े से ढह जाता । और यह कहना कि इष्ट की रक्षा के लिए सुख और अनिष्ट को धोने के लिए दुःख दिया जाता है यह कहना भी निरी कल्पना मात्र है । क्यों कि इष्ट क्या और अनिष्ट क्या इसीका अाज तक कोई निर्णय नहीं कर सका । इस प्रकार सुख और दुःखको भी समस्या है जिसे समझना असम्भत्र सा हो रहा है । एक व्यक्ति के लिए जो सुख है वहीं दूसरे के लिए दुःख प्रतीत हो रहा है। हम कहां तक कहें इस गवेषणात्मक मुंदर ग्रन्ध में यह "कर्म और फल" प्रकरण ३सी प्रकारकी शास्त्र
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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