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________________ ( ६८५ ) तो आपको यह न कहना चाहिये यह मेरा शरीर है श्रद कहना चाहिये कि यह मेरा सुख दुःख है । परन्तु इस प्रकारका व्यवहार तो कहीं होता ही नहीं । श्रतः कारागारको भी यही कहना पड़ेगा कि यह दुःख है परन्तु हम देखते हैं कि बहुत से व्यक्ति कारागारोंमें ही मस्त रहते हैं और बाहर आकर भी वहीं जानेकी कोशिश करते हैं अतः कारागार भी सुख दुःख नहीं है। इसी प्रकार वेतनका भी डाल है। अतः यह कहना चाहिये कम के अनेक फलों में से ये भी फल हैं न कि यही फल हैं अगर चोरीका फल कारागार ही है तो अनेक धूर्त आयु भर चोरी आदि करते हैं परन्तु कभी पकड़े नहीं जाते। संयोग यश कभी पकड़े भी गये तो रिश्वत आदि देकर अथवा गवाहोंके बिगड़ने से और स.क्षीके न मिलने से छूट जाते हैं तो उनको चोरी का फल कहां मिला और उन्होंने उम्र भर चोरी करके जो धन एकत्रित किया और आनन्द लूटा वह किसका फल है। L सथा च लाखो देश भक्त बिना ही चोरी किए जला में पड़े हैं यह सिद्ध कर रहा है कि कारागार मिल जाता है। इससे चोरी का फल कारागार सिद्ध न हो सका क्योंकि इसमें अव्याप्ति और अति व्यामि दोनों ही दोष मौजूद है। इसी प्रकार वेतन को अध्यापनका फल कहने में भी अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोष है क्योंकि बहुतसे परोपकारी महानुभाव बिना वेतन लिए हुए पढ़ाते हैं तो क्या यह मानना होगा कि उन्हें पानेका कोई फल प्राप्त नहीं होगा ? क्योंकि आपके कथनानुसार तो उन्होंने वेतनरूपी फल लिया ही नहीं । और बहुतसे व्यक्ति वेतन तो लेते हैं परन्तु पढ़ाते हैं नहीं जैसे पेन्शनयाफ्ता कर्म - चारी । वास्तव में न तो वेतन फल है और न पढ़ना फल है। यह तो एक दूसरे का आदान प्रदान है। एक व्यक्ति को हमारे समय
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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