SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 704
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का मला है।" यहां अपने सुख और दुःखको कम का फाल मामा हैं परन्तु आगे १ पृष्ठबाद ही पृष्ट ३०६ में आपने शरीर को कम फल माना है और उसमें न्याय नर्शन का प्रमाण भी दिया है. यथा "पूर्वकृत फलानुबंधात् तदुत्पतिः' अर्थात्-पूर्व जन्ममें किये हुए कम के फलस्वरूप शरीरकी उत्पत्ति होती है। अर्थात् जो जन्म हमने इस समय पाया है वह पूर्व जन्म के संस्कारों में से इश्की रक्षा और श्रमिष्टके विनाश के लिए दिया जाता है । यहाँ आपने शरीरको कर्म का फल मान लिया और शरीर को पूर्व जन्मके संस्कारों में से दिया जाना माना। और संस्कारोंको आपने कम का सार मान लिया अतः स्पष्ट होगया कि कमों में से शरीर मिला, और अापके कथनानुसार शरीर हुया काँका फल । तो कम से ही फलकी उत्पत्तिको आपने भी मान लिया। और 'जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले" इस कहावसको चरितार्थ कर दिया । फिर नहीं मालूम आपने इस कर्म फलके दासा ईश्वरकी कल्पना करके उसके मएडन का क्यों साहस किया ? आगे चल कर श्राप इसको भी भूल गए. और लिख दिया कि "चोरीका फल कारागार है। यह दूसरसे मिला है. बोरी में से फूट नहीं निकला है। चोरी उसका निमित्त कारण है। पादान कारण नहीं, इसी प्रकार अध्यापक को जो चेतन मिलना है वह उसके पढ़ानेका फल है।" ___यहाँ आपने वेतन और कारागारको फन्न बना दिया. आपने पहिले तो दुख दुम्बके लिये यही फल है। इसमें यही लगा कर सथ का विरोध कर दिया. परन्तु फिर शरीरको फल मान लिया, और अच वेतन और कारागारको फल कहने लगे. अब आपके कथनानुसार किसको फल माना जावे ? क्या आपके मतानुसार शरीर, कारागार, वेतन आदि ही सुख दुख है। यदि ऐसा है. सब
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy