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________________ 1 ( ६८७ ) I तर्क, एवं विज्ञान विरुद्ध मिध्या कल्पनाओं से सुशोभित है। हमें यह कदापि आशा न थी कि एक सुयोग्य विद्वान इस प्रकरण को लिखने में इस तरह असफल होगा। संस्कारों के विषय में आपने पैसों रुपयों और नोटों का उदाहरण देकर हमारे इस कथन की पुष्टि कर दी है। क्यों कि वस्तुस्थिति इस के चिल्कुल विपरीत है। आप के जिस मनुष्य ने देवदत्त यज्ञदत सोमदत के यहां से चोरी की है कौन कहता है उस चोरी का रुपयों का और जिन के यहां चोरी की है उनका प्रभाव सूक्ष्म शरीर पर नहीं, अपितु स्थूल शरीर पर हैं ? श्रीमान् जी प्रभाव तो आत्मा पर हुआ न सूक्ष्म शरीर पर और न स्थूल शरीर पर | क्योंकि सूक्ष्म शरीर का आत्मा से निकट का सम्बन्ध है अतः सूक्ष्म शरीर पर ही अधिक और स्थायी संस्कार जमते हैं उनके नाम क्या स्थूल शरीर याद रखता है ! क्या उस स्थान को देखकर जहां आपके मनुष्य ने चोरीकी थी स्थूल शरीर को चोरी याद आ जाती है ? क्या याद करना स्थूल शरीर का कार्य है ? आज भी हम यहाँ बैठे हुए उन सम्पूर्ण शहरों के सूक्ष्म चित्रों को आंख बन्द कर देख लेते हैं जिनमें हमने भ्रमण किया है तो क्या यह स्थूल शरीर देख रहा है ? श्रीमान् जी आप तो एक बार चोरी का जिकर करते है। तथ्य तो यह है कि असंख्य जन्म जन्मान्तरोंमें जो इस जीवने कर्म किये हैं उन सब के चित्ररूप अलंकार स्वयं इसके सूक्ष्म शरीर में विद्यमान हैं। इसी लिए भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है "बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तचार्जुन ? यान्यहं वेद सर्वाणि नत्वं वेत्थ परंतप ? हे अर्जुन! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं परन्तु तू उन्हें नहीं जानता है मैं उन सबको जानता हूं। क्या भगवान कृष्ण ने यह दावा अपने इस स्थूल शरीर पर पड़े हुये संस्कारों
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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