SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 687
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६६७ ) दूसरोंका धर्म बिगाड़ना आदि बुरे निन्दनीय कर्म करनाही जिनका काम होता है पे जोय गरक श्रायु बांधते हैं। - न म कर्म वह है जिसके कारण संसारी जीवों के अच्छे बुरे शरीर बनजाने हैं। जैसे चित्र बनाने वाला अनेक तरहके चित्र ( तसवीरें ) बनाया करता है । उसी प्रकार नाम कर्म के कारण. सुडौल, बेडौल, लम्बा: ठिगना कुबड़ा काला गोरा, कमजोर, हड़ियों वाल मजबूत हड्डियों वाला श्रादि अनेक तरह के शरीर तैयार होते हैं। यह कर्म दो प्रकार का है शुभ और अशुभ जिसके कारण अच्छा, सुराना, सुडौल शरीर बनता है वह शुभ नाम कर्म है, और जिससे बेडौल, कुत्रड़ा, बदसूरत आदि खराब शरीर बनता है वह अशुभ नाम कर्म है । जो जीव कुडे, बौने, और लूले. लगडे आदि सुंदर ( बदसूरत ) जीवों को देखकर उनका मन्त्रील उड़ाते हैं। अपनी खूबसूरतीका घमण्ड करते हैं। अच्छे सदाचारी मनुष्यों को दोष लगाते है, दूसरे की सुंदरता बिगाड़ने का उद्योग करते हैं उनके अशुभ कर्म बनता है। और जो इनसे उल्टे अ कर्म करते हैं वे अपने लिये शुभ नाम कर्म तैयार करते हैं। ७ गोत्र कर्म-गोत्र कर्म वह है जो कि जीवों को ऊंचे नीचे कुल (जाति) में उत्पन्न करें। जिस प्रकार कुम्हार कोई नो धड़ा आदि ऐसा बर्तन बनाता है जिसको लोग ऊँचा रखते हैं उसीमें घी पानो रखकर पीते हैं तथा कोई कुन ली आदि ऐसा बर्तन बनाता है जो कि टट्टी खानेके लिये ही काम आता है जिसको कोई छूता भी नहीं है। इसी प्रकार गोत्र कर्मके कारण कोई जीव तो क्षत्रिय, ब्राह्मण आदि अच्छे कुलीन घरमें पैदा होता है और कोई चमार मेहतर चांडाल, आदि नीच कुल में उत्पन्न होते हैं। जिनका नीच काम करके आजीविका करना ही खास काम होता है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy