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________________ ( ६६६ ) हिंसा, घोस्त्रयाजी, घमंड, अन्याय, अत्याचार, लोभ, काम. श्री प्रादि कहने नेसून पळाला, गुरु शास्त्रकी निन्दा करने से, दूसरेको ठगने आदि बुरे कार्य करनेसे मोहनीय कर्म तैयार होता है। और इनसे अच्छे कार्य किये जायें तो मोहनीय कर्म हल्का होता जाता है, | ५- आयु कर्म -- वह है जो कि जीवको मनुष्य, पशु, देव, नरक इनमें से किसी एकके शरीर में अपनी आयु ( उ ) तक रोके रखता है । उस शरीरमेंसे निकल कर किसी दूसरे शरीर में नहीं जाने देता । जिस प्रकार जेलर किसी सख्त कैद वाले कैदीको कुछ समय के लिये काल कोठरी में बन्द कर देता है। उससे निकल कर दूसरी जगह नहीं जाने देता। उसी प्रकार यह कर्म भी पहले कमाये हुए कर्मके अनुसार पाये हुए मनुष्य श्रादिके शरीर में उस उम्र तक रोके रखता है जो कि उसने पहले जन्म में बांधी थी। जो जीव दयालु, परोपकारी. धर्मारमा सदाचारी होते हैं. हिंसा आदि पापोंसे दूर रहते हैं सन्तोषी होते हैं वे देव आयु कर्म बांधते हैं। जिन जीवोंके कार्य न बहुत अधिक अच्छे होते हैं और न बहुत अधिक खराब ही होते है, बिना कारण किसीको कम नहीं देते, अधिक लालची, अधिक कोधी नहीं होते. उनके मनुष्य श्रायु कर्म बंधता है। I जो जीव दूसरों के ठगने में धोखा देने में, छल कपट करने में झूठ बोलने में, माठी बातें बनाकर दूसरों को फंसा लेने में, विश्वासघात करने में प्रायः लगे रहते हैं वे पशु आयु कर्म को आगे के वास्ते लिये करते हैं। और जो जीव अधिक होते हैं ऐसा करना बिना कारण दूसरों का नाश करता सदा दूसरों के विगाह में लगे रहना, बल पूर्वक ( जबरदस्ती )
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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