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________________ ( ६ ) देव तथा क्षत्रिय, ब्राह्मण आदि मनुष्य ऊँच गोकर्म के निमित्त से होते हैं और चमार, चांडाल, आदि मनुष्य पशु तथा लरक वाले जीव, नीच गोत्रकर्मके क रण होते हैं। इस प्रकार नीच ऊँचके भेदसे यह कर्म दो प्रकार का है। ___ जो मनुष्य अपने बड़प्पनका घमएड करता है दूसरोंका छांटा समझता रहे. अपना बढ़ाई और दूसरोंकी निंदा करमा ग्यास काम हो, अपनी जाति कुल आदिका अभिमान कर कमीने ख्याल रक्खे. अच्छे पुरुषोंको तथा पूज्यदेव, गुरु, शास्त्र की विनय न करे घह जीव नीचगोत्रका कर्म बांधता है और जो इनके विरुद्ध अच्छे कार्य करते हैं उनके ऊँच गोत्र कर्म तैयार होते हैं। -अन्तराय कर्म-अंतराय कर्म वह है जो कि अच्छे कार्योंमें वि ( रुकावट ) डाल दिया करता है, था जिसके निमित्त से अच्छे कार्योंमें विन आ जाये । जैसे दो व्यापारियों ने एक साथ एक ही व्यापार शुरु किया। उनमें से एक ने तो उस व्यापारमें अच्छा धन पैदा किया, किन्तु दूसरे व्यापारीके माल बेचते समय बाजार मन्दा होगया और खरीदते समय महगा हो गया । घरमें पुत्र बीमार हो जानेसे यह ठीक समय पर जम कि उसे लाभ होता, खरीद विक्री नहीं कर पाया । फल यह हुवा कि उसने कुछ भी नहीं कमाया ! यह तो मान दूर रही किंतु अपनी पूंजीसे भी हाथ धो बैठा। यहां पहिले व्यापारी को अन्तराय कर्म नहीं दवाया था. जिससे कि उसको अपना व्यापार में कोई विन्न नहीं आया। इस कारण वह धम पैदा करने में सफल होगया और दूसरा व्यापारी का पहिला बाँधा हुआ कम अपना फल दे रहा था, इस कारण उसको निमित्त ऐसे मिले कि वह अपने व्यापारमें असफल ( ना कामयाब) रहा। ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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