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________________ और मूर्य के ही नाम से बुलाया जाता है। इसी प्रकार अग्नि और वायु के अधिष्ठाता देवता हैं। देवताओं का श्वयं बहुत बड़ा है २ मार पोखर है धन है । गक पर नेता एक एक दिव्य शक्ति का नियन्ता है. पर उन सब के ऊपर उन सब का नियन्ता परमेश्वर है. इसलिये सभी देवता मिल कर जगत का प्रबन्ध इस प्रकार कर रहे हैं जिस प्रकार राजा के श्राधीन उसके भृत्य उसके राज्य का प्रबन्ध करते हैं। देवताओं की उपासनाओं से उन कामनाओं की सिद्धि होती है जिसके थे मालिक होते हैं। पर मुक्ति नहीं। मुक्ति केनल ब्रह्म ज्ञान से प्राप्त होती है । देवता स्वयं भो ब्राह्म को साक्षात करने से ही मुक्त होते हैं। ब्रह्म को साक्षात करके भी वे तब तक दिव्य शरीर को धारणा किये रहते हैं जब तक उनका यह अधिकार समाप्त नहीं हो लेता । जिस अधिकार पर उनको परमेश्वर ने लगाया है। अधिकार की समाप्ति पर वे मुक्त हो जाते हैं। और उनकी जगह दूसरे श्रा ग्रहण करते हैं जो मनुष्यों में से ही उपासना द्वारा उस पदवीं के योग्य बन गये हैं। देवताओं के ऐश्वर्य के दर्जे हैं और सबसे ऊंचा दर्जा अमाका है ।" (पंराजारामजी कृत अथर्ववेदभाष्य भूमिकामे) समीक्षा, श्री शंकराचार्य के मत में ईश्वर भी विकारी है उसको भी जीव विशेषहीं कह सकते हैं! अथवा एक देवता विशेष। अतः उनके मत में परमेश्वर के अर्थ वर्तमान ईश्वर के नहीं हैं क्योंकि ईश्वर का खण्डन सो उन्होंने स्वय' ही वेदान्त भाष्य में बड़ी प्रश्नल युक्तियों से किया है. पाठक वृन्द वेदान्त भाग्य का दूसरा अध्याय देखें। इस पुस्तक में भी वेदान्तदर्शन प्रकरण' में विस्तार पूर्वक लिखेंगे। अतः यहां ईश्वर का अर्थ अन्य समाज का वर्तमान ईश्वर नहीं है । तथा च ग्रह वैदिक वांगमय के भी विरुद्ध है। क्योंकि वैदिक साहित्य में कहीं भी ऐसा लाव नहीं है.
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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