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________________ कि परमेश्वर ने इन देवताओंको नियुक्त किया है। तथा न ही यहां . ऐसा कोई प्रमाण उपस्थित किया गया है। अतः यह मान्यता अवैदिक है । तथा इस मान्यता से ईश्वर का ईश्वरत्व ही नष्ट हो गया, क्योंकि कार्य संचालन के लिये वह देवताओंके प्राधीन है, जैसे राजा आदि अपने भृत्यों के अधीन हैं । * पं० राजाराम जी का निजमत वेद में परमात्मा के वर्णन का प्रकार "वेद दो प्रकार से परमात्मा का वर्णन करता है । एक बाहर के सम्बन्धों से अलग हुए उसके केवल स्वरूप का. दूसरा शाहरके जगत से सम्बन्ध रखते हुए का। यह बात इस तरह समझनी चाहिये कि जैसे कोई पूछे कि आत्मा क्या है, तो हम उसर देते हैं कि जो आँख से देखता है, कान से सुनता है. और मन से सोचता है बह आत्मा है। अब यदि यह पूछे कि आँख, कान, मन से जो देखता सुनता और सोचता है यह स्वयं क्या है ? तक इसके उत्तर में जो कहा जायगा वह बाहर के सम्बन्धों से रहित बारमा के केवल स्वरूप का वर्णन होगा और जो पहला वर्णन छुपा हूँ, यह शरीर से सम्बन्ध रखते हुए आत्मा का है। इसी प्रकार कोई पूछे कि परमात्मा क्या है ? तो हम उत्तर देते हैं कि जो इस जगत को रचसा, पालता और प्रलय करता है वह परमात्मा है । अब यदि वह फिर पूछे कि जो इस जगत को रचता, पालता, प्रलय करता है वह स्वयं क्या है ? इसके उत्तरमें जो कहा जायगा वह बाहर के सम्बन्धों से अलग हुए उसके फेवल स्वरूप का वर्णन होगा और जो पहला वर्णन हुश्रा है, वह * नोट—यहां प्रकर- देवताका है, अतः श्री शंकराचार्य मतमें, इन्द्र श्रादि देवता, ईश्वर नहीं है, अपितु वह मनुष्यास ऊपर और ईश्वर से नीचे एक जाति विशेष है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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