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________________ ( 20 ) श्री शंकराचार्य का सिद्धान्त 3 "परमेश्वर की सृष्टि में देहधारी जीवों की सृष्टि नाना प्रकार की है। इस भूलोक में ही शैवाल तृण घास लता, गुल्म, वृक्ष, वनस्पति आदि नाना प्रकार के स्थावर और कमि. कीट पतंग. पशु, पक्षी आदि नाना प्रकार के जंगम हैं। ये सारे जीव विशेषहैं। मनुष्य इन सबसे ऊंची श्र ेणी का जांव है। पर परमात्मा की सृष्टि यहीं तक समाप्त नहीं हैं। मनुष्य से कई दर्जी में ऊंचा पद रखने वाले जीव भी उसकी में विद्यमान हैं, जो मनुष्यों की नाई वेतन हैं। वे अपनी शक्ति और ज्ञान में इतने ऊंचे पहुंचे हुए हैं कि मनुष्य की शक्ति और ज्ञान उनके सामने तुच्छ है । इस अनेक प्रकार की सृष्टि में सबसे ऊंचा स्थान देवताओं का है। देवता चेतन हैं, मनुष्यों से ऊपर और परमेश्वर से नीचे हैं। परमेश्वर की ओर से उनको भिन्न र अधिकार मिले हुए हैं, जिनका ये पालन करते हैं। देवता अजर और अमर हैं, पर उनका अजर अमर होना मनुष्यों की अपेक्षा से है. वस्तुतः उनकी भी अपनी आयु नियत है। ब्रह्माण्ड की दिव्य शक्तियों में से एक एक शक्ति पर एक एक देवता का अधिकार है। और जिस शक्तिपर जिसका अधिकार है वही उसका देह है जो उसके वश में हैं। जैसे हमारे देह में एक जीबात्मा है जो इस देह का अधिपति है इसी प्रकार उस शक्ति के अन्दर भी एक जीवात्मा है जो उसका अधिपति है । जैसे हमारे आधीन यह देह है, वैसे ही एक देवता के आधीन सूर्य रूपी देह है। हम एक थोड़ी सी शक्ति वाले देह के स्वामी हैं, वह एक बड़ी शक्ति वाले देह के स्वामी हैं । वह अध्यात्म शक्तियों में इतना बड़ा हुआ है कि अपनी इच्छा के अनुसार जैसा चाहे वैसा रूप धारण कर जहां चाहे वहां जा सकता है। यह देव सूर्य का अधिष्ठाता कहलाता है.
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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