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________________ चाहे जागता उस चित्रको पहनाद ला और बाला झाल मा देगा । जो लोम कि प्रायः मनमें चित्र बनाया करते हैं उन सबको कुछ न कुछ दिव्य दृष्टि होती है और अपने आप इसकी परीक्षा करके यह निश्चय कर सकते हैं कि इच्छासे वे सूक्ष्म मन लोकके पदार्थ (अणु) को सांचे में ढाल सकते हैं अर्थात् उसमें चित्र बन्ना सकते हैं। (४३) वासना लोक के पदार्थ के अणु, मन लोक के अणुओं से कुछ कम सूक्ष्म तो हैं परन्तु इसमें भी इसी प्रकार चित्र बन सकते हैं जैसे कि मैडम एच० पी० ब्लाचेटकोने एडी नामी किमान के घर पर मामूल* की वासना अणुओं के चित्र को ( इच्छा शक्ति से बदल कर उनमें उन लोगों के चित्र बना दिये जिनको स्वयं मैडम ही पहचानती थीं और कोई वहां पास नहीं था जा पहचानता हो । इसमें कुछ अचम्भे की बात नहीं गिनी जा सकती है जब हमको यह मालूम है कि विशेष प्रकार के विचार की देव डाल देने से हमारे स्थूल शरीर तक का आकार बदलता जाता है यहां तक कि बुढ़ाने की छपि चेहरे पर छप जाती है क्योंकि स्थूल शरीर की सुन्दरता श्राकार और रङ्ग में नहीं है किन्तु छवि में है। यह टम मानो अंदरके यात्माके सांचे पर दला हुआ भेष है। अगर किसी विशेष विचार ( खबाल ) या भलाई या बुराई को देव पर जाती है तो उसके संस्कार या अंक स्थूल शरीर के शकच पर अंकित हो जाते हैं और बिना दिव्य दृष्टि के ही हम यह कह सकते हैं कि किसी का स्वभाव उदार है या लालचा. धीरज करने वाला है या अविश्वासी. प्रेमी है या द्रोही । यह बात ऐसी साधारण है कि इसकी ओर हम दृष्टि ही नहीं ___*बह मनुष्य जिम के शरीर में दूसरी आत्माएं. या जाती हैं और जिसकी अामाओं के आवेश या चल से अमाचारमा अक्तियों से जानी हैं ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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