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________________ ( ६०८ ) शतं ते युत हयनान द्वे युते त्रीणि चत्वारि कुण्मः | इन्द्राग्नी विश्वे देवास्तेनु मन्यन्ताम हणीयमानः ॥२१॥ शरदेवा हेमन्साय क्सन्ताय ग्रीष्माय परि दमसि । वर्षाणि तुभ्यं स्योनानि येषु वर्धन्त औषधीः ॥ २२ ॥ अर्थ-जो कुछ तू खाता है जो कुछ तू पत्तिाहूँ. अनाज जो कि पृथ्वीका रस हैं जो खाद्य पदार्थ है नथा जो अखाद्य हैं उन सब अन्नीको तेरे लिए विप रहित करता हूं ॥६तुझे दिन और रात दोनाका सौंपता हूं. भर इस (बालक) का उन अरायों (भूखों) से बचाओ जो इसे खाना चाहते हैं ||५०1] अब याज्ञिक आशावाद देते हैं । हे बालक : नरा १० वर्षकी पूण श्रायु को हम द्विगुना त्रिगुणा तथा चौगुना करते है । (अर्थात् तु चार सौ वर्ष तक जी हम यह आशीर्वाद देते हैं) इन्द्र अमिश्रादि सब देवता क्रोध न करते हुए (शान्त भावसे) हमारी इस शुभ कामनाको स्वीकार करें हम तुझे शरद, हेमन्त, बसन्त तथा प्रीष्मको सौंपते है वर्षायें जिनमें औषधियां बढ़ती हैं तर लिग सुखकारी हो ॥२॥ ___ उपरोक्त मन्त्र इतने सरल हैं कि प्रत्सक संस्कृतज्ञ सुगमतासे समझ सकता है । मन्त्र १८ में खाद्य अन्नोंका नाम भी ( चावल, जो) बतला दिया है । सबसे बड़े दुःस्त्रको बात तो यह है कि मन्त्र -३ तथा-४ में स्पष्ट (मा विभ) अर्थात् मय गत कर. तू मरेगा नहीं ऐसा लिखा है । कौन बिचार शील ऐसा होगा जो उपरोक्त मन्त्रोंसे सृष्टिको श्रायुका वर्णन समझेगा । हनने जो अर्थ इन मंत्रा. के दिये हैं प्रायः सभी भाष्यकारोंने यही अर्थ किये हैं। परन्तु मन्त्र .५ में आयें (अयुत)के अर्थ दस हजार वर्ष तथा युगके अथ चार किया है. अर्थात तू जुग जी एसा अर्थ भी किया है । आयं समाजके प्रतिष्ठित विद्वान पं० राजाराम जीने अपने अथर्व
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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