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________________ ( ६०७ ) इस पर विचार जब हम इस सूक्तकी तथा इस मंत्र को देखते हैं और उपरोक पढ़ते हैं तो हमें बड़ा हो दुःख होता है । भारतवर्षके दुर्भाग्य का कारण श्रीस्वामी दयानन्दजीने ही विद्वानोंका पक्षपात बतलाया है उसका स्वत्रन्त उदाहरण यहां उपलब्ध होता है। हम इन भाइयों से इतना ही जानना चाहते हैं कि इस मंत्र में ( कृणमः ) यह जो बहु बचनान्त किया है उसका कर्त्ता कौन है. यदि ईश्वर है तो क्या ईश्वर भी बहुतसे है । तथा च इसमें (ते) यह शब्द किसके लिये आया हैं. और आगे इसी मन्त्रके उत्तरार्धमें जो यह कहा है कि इन्द्र, अमि सचदेव क्रोध न करते हुए हमारे इस वचनको स्वीकार करें। क्या यह ईश्वर इन देवोंसे प्रार्थना कर रहा है । और क्या ईश्वर इन देवोंके कोसे भयभीत होरहा है। क्या कहें वास्तव में तो इनके सम्पूर्ण सिद्धान्त ही निराधार हैं उनकी पुष्टिके लिए ये लोग इस प्रकारके घृणित प्रयत्न किया करते हैं। : इस सूक्तका विनियोग बालकके नाम करण संष्कार में है, और बालककी आयु वृद्धिके लिए इस मन्त्र में आशीर्वाद है । हम विशेष कुछ न लिख कर विवादास्पद मन्त्र से पूर्णके कुछ मन्त्र यथा पश्चात् के मन्त्र लिखकर उसके अर्थ लिख देते हैं जिससे पाठक भली प्रकार जान जर्के यदश्नासि यत पिवसि धान्यं कृष्णः पयः । यदाद्यं यदनाद्यं सर्वं ते विषं कृणोमि ॥ १६ ॥ अन्हे चत्वा रात्रये चोभाभ्यां परि दवसि । पेभ्यो जिareम्य इमं मे परिरक्षत ॥ २० ॥
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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