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________________ - -- ... - -- - { ६०० । बोद्भाध्यमें हमारे अर्थ की पुष्टिको है । हमारी सम्मनिमें ये सब अर्थ ठीक नहीं हैं, क्योंकि (अयुत) शब्द पूर्ण अर्थ में इसी चोदने पाया है। यथा-- अयुतोहमयुतो म आत्मा युतं मे चचु रयुतं श्रोत्रम् । . . . . अथर्ववेद कां० १६ सूत्र. ५१ मं०१ ' अर्थात् -- मैं अयुत (पूर्ण) हूं मेरी आत्मा. चक्षुः श्रोत्र आदि सब पूर्ण है। यहां अस शब्दके अन्य अर्थ हो ही नहीं सकने, अतः सभी भाष्यकारोंने यहां अचुतके अर्थ पूर्ण किए हैं। बस जय श्रयुतके अर्थ पूर्ण है तो यहां भी इस शब्द के अर्थ पूर्ण ही हैं। क्योंकि मनुष्यको पूर्ण आयु १०० वर्षकी मानना सर्वतंत्र अधिक सिद्धान्त है तथा अधिक से अधिक ४६. वर्ष की आयु का परिमाण भी श्री स्वामीजी महाराज ने स्वयं स्वीकार किया है ( रह गया युग शब्द का अर्थ सा तो यहां 'हे') शब्दका युगे' ऐसा विशेषणार्थ में युग शब्द का प्रयोग हुश्रा है। वास्तवमें तो यहां (युगे ) यह पद पाद पूर्ति के लिए रखा गया। अस्तु, जो कुछ भी हो। उपरोक्त वैविक प्रमाणाभास जो इस विषयमें दिये गए हैं उनकी निःसारता प्रकट हो चुकी तथा इन प्रमाणोंके अलावा किसी अन्य प्रमाणको देनेका किसी भी विद्वानने साहस नहीं किया अतः यह सिद्ध है कि वेदोंमें इस सृष्टि उत्पत्ति की वर्तमान मान्यताका कहीं वर्णन नहीं है। वेदों में कलि आदि शब्द वैदिक वाङमयमें कलि. आदि शब्दों का उग्रवहार ग्रूतके पासों के लिए हुआ है। वैदिक समयमें जूषा बड़े जोरोंसे स्खला जाता था मश्रा गन्धर्ष जाति की स्त्रियां इस विषयमें दक्ष हुआ
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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