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________________ . ( ६०४ ) विचित्र अर्थ है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि "करता है" इस क्रियाकी कल्पना किस बाधार पर की गई है यह भी विचारणीय है । क्या इस प्रकारके अर्थ अथवा अध्याहार करने का अन्य किसीको भी अधिकार है यदि हाँ नब तो बड़ी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ेगा। यदि नहीं तो ऐसा क्यों है ? श्री स्वामीजी महाराजने शतपथका एक प्रमाण देने की भी दया की है। "सर्वच सहस्र सर्वस्य दातासि"शतका ०७वा०२०१३ बहुत कुछ ध्यानपूर्यक दीर्घकाल तक विचार करने पर भी हम यह न समझ सके कि यह प्रमाण क्यों दिया गया है बहुत सम्भव हैं किमी प्रनिपक्षीकी ओर से यह प्रमाण स्वामीजीने लिखा हो तथा इसका जो उत्तर म्यामोजीने लिखा हो वह प्रार्य भाइयोंकी कृपाले छपना रह गया हो। कुछ भी हो इस प्रमाण के लिख जानेसे तो स्वामीजीके अर्थी का सर्वश्रा खण्डन होगया : क्योंकि इसमें दातासि" यह क्रिया स्पष्ट है। अब इस माझा के अनुसार मन्त्र के अर्थ हुये कि तू सत्र कुछ देने वाला है। सहस्त्रस्य प्रमासि सहस्रम्य प्रतिमासि । महसम्योन्मामि साहस्रोऽसिमहरयन्या ।। यजु०१५६५ इसका शब्दार्थ है कि तू सबका सहस्रका प्रमाण है. तश्रा सबका प्रतिमान (प्रतिनिधि) है तथाच सबका तराज है तू सबका पूज्य है सबके लिए तेरेको । _इस मन्त्रमें जो स्वा' आदि शब्द आये हैं उससे ईश्वरकी कल्पनाका निराकरण हो जाता है। क्योंकि ईश्वर न तो सबका प्रतिनिधि ही है और तराजू । यह सब कुछ होने पर भी ल्वा) तेरा. इस शब्दका ईश्वर विषयक स्वामीजी के अभमें किस प्रकार
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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