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________________ ( ६०३ ) या औषधी: त्रियुगं पुरा पूर्वा जाता ! अर्थात् जो औषधि प्रथम तीन मास तक पक कर पूर्ण उत्पन्न हुई हैं । देवेभ्यः वह औषधि वैद्योंके लिये उपयुक्त है । उसका रंग व गहरा पीला होता है, ऐसा मैं जानता है. वह अनेक स्थानों पर प्राप्त हो सकती हैं। A अतः विवादास्पद मन्त्र से सतयुग आदिकी कल्पना निराधार तथा केवल कल्पना मात्र ही है। इस वेदमें से अन्य कोई मन्त्र किसी ने इस विषय में उपस्थित नहीं किया। यजुर्वेदः हां ऋग्वेदादिभाष्यभूमिकामें श्री स्वामी जी महाराजने एक यजुर्वेद का प्रमाण उपस्थित किया है उस पर विचार अवश्य करना है । सहस्रस्य प्रमासि सहस्रस्य प्रतिमासि । यजु० १५/६५ श्री स्वामी दयानन्दजीने मन्यका कुछ भाग लिख कर इसका अर्थ इस प्रकार किया है:- हे परमेश्वर ! आप इस हज़ार चतुर्युगी के दिन और रात्री को प्रमाण अर्थात निर्माण करने वाले हो । श्री स्वामीजी महाराजने जो अधूरा मन्त्र लिखा है उसमें न तो युग शब्दका कहीं निशान हैं और न चतुर्युगी का हीं। हो सहस्त्र शब्द अवश्य आया है यदि सहस्र शब्द के आने मात्रसे सहस्र चतुर्युगी का अर्थ होता है ऐसा नियम किसी ग्रन्थ में हो तो वन्य हमारे देखने में तो आज तक नहीं आया है। दूसरी बात इसमें परमेश्वर शब्द भी नहीं है. पुनः परमेश्वर अर्थ फौदमी प्रक्रियासे किया गया है यह भी हमारे जैसा अल्पज्ञ नहीं समझ सकता । श्रागे है यह भी एक चल कर प्रमाण शब्दका अर्थ निर्माण किया गया "
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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