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________________ i ( ५८५ ) यदि उपनिषद् और पाणिनि सूत्रके टीकाकारोंके मतानुसार तथा वेदकालीन सर्व साधारण में प्रसिद्ध पुनर्जन्म' को मानना न मानना ही 'आस्तिक नास्तिक' शब्दका अर्थ लिया जाय तो बौद्ध भी परम आस्तिक सिद्ध होते हैं । उनके सिद्धांतोंमें तो पुनर्जन्मकी ast मर्यादा है स्वयं बुद्धदेवने अपने अनेक जन्मोंकी पिछले घट ओका वर्णन किया है। जिनका उल्लेख ललितविस्तर बौधिचर्या. बौधिसत्वावदान कल्पलता प्रभृतियौद्ध ग्रन्थों में विस्तृत रूप से हैं, बौद्ध सम्प्रदाय में बुद्ध हो जाने वाले जीवोंकी पूर्वजन्म की अवस्थाको बोधिसत्वावस्था कहते हैं और उस बुद्ध जीवको पूर्व जन्ममें बोधिसत्व कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि बौद्ध सम्प्रदाय में पुर्वजन्म समय है। सरक्षित तत्र संग्रह से यह पता चलता है कि वेदी निमित्त शाखा में बुद्धदेवको सर्वज्ञ माना है इस शाखा को कुछ बौद्ध प्रामाण्य मानते थे । इससे यह सिद्ध है । कि वेदको प्रामाएय मानने वाले बौद्ध भो थे । जैसा लिखा पाया जाता है "किन्तु वेदप्रमाणत्वं यदि युष्माभिरिष्यते । तत् किं भगवतो मूढैः सर्वशत्वं न गम्यते" "निमित्तनाम्नि सर्वज्ञो भगवान मुनिसत्तमः । शाखान्तरेपि विष्पष्टं मुध्यते ब्राह्मणेर्बुधैः ।" अर्थात्-यदि बेदको प्रमाण मानना आपको अभीष्ट है तो हे मूर्खो, भगवान (बुद्ध) का सर्वशत्व क्यों नहीं मानते ? निमित्त नामकी दूसरी वेदशाखा में ब्राह्मण-पंडितों के द्वारा भगवान सर्वज्ञ कहा गया है जो स्पष्ट है अर्थात् अब वे प्रामाण्य मानने पर भी सर्वज्ञत्व स्वीकार क्यों नहीं करते ? इत्यादि इसी प्रकार जैन दर्शन भी आस्तिक दर्शन सिद्ध हो जाता है, क्योंकि उस दर्शनमें भी पुनर्जन्म एवं नाना योनिप्रभृति बातें मानी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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