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________________ ( ५८४ ) मात्रवादिनः अन्ये पुनः सर्वशून्यत्व वादिनः (चे० ५० शा० भा० २ । २ । ३८ ) । वस्तुतः देखा जाय तो बौद्ध दार्शनिक भी नास्तिवादी नहीं हैं, क्योंकि उनके भेदोंमें जो क्षणिक विज्ञानवादी योगाचार क्षणिक aftaari Tarfer और वाह्यानुमेयत्ववादी सौत्रान्तिक के नाम से प्रसिद्ध है, वे तो अतिवादी ही हैं। एक जो सर्व शून्यत्ववादी माध्यमिक हैं उनके मत में भी शून्यताका अर्थ अभाव नहीं माना गया है । किन्तु पदार्थके स्वतन्त्र स्वरूपका अभाव माना गया है। जैसे— " तस्मादिह प्रतीत्यसमुत्पन्नस्य स्वतन्त्रस्य स्वरूपविरतात् स्वतन्त्रस्य रूपरहितोऽर्थः शून्यतार्थ : " - "न सर्वाभावाभावोऽर्थः ++ तस्मादिह प्रतीत्यसमुत्पन्नं मायावत्" (आर्यदेव, चतुर्थशतक १४३७कारिकाकी चन्द्र कीर्तिव्याख्या) अर्थात् -" इसके लिये यहां प्रतीति मात्र से उत्पन्न पदार्थोंका स्वतन्त्र कोई स्वरूप न रहनेके कारण शून्यताका अर्थ है वस्तुकी स्वतन्त्र सत्ताका अभाव, न कि सब भावोंका अभाव | इस कारण यहां प्रतीति मात्र तक उत्पन्न होकर रहने वाले पदार्थोंको मायाके समान समझना चाहिये, यह चन्द्रकीर्तिकी व्याख्याका तात्पर्य है । तभी तो अमरसिंह अपने अमरकोष में युद्धदेव के नामोंमें अद्वय वादी' भी एक नाम लिया है। इससे ज्ञात होता है कि बौद्ध भी एक प्रकार के अद्वैतवादी" ही हैं. अन्तर केवल इतना ही है कि वे वेद या वेदान्त नहीं मानते जिससे स्मृति कालीन नास्तिको वेद निन्दकः नियमानुसार वे नास्तिक ठहरते हैं । इसी प्रकार चार्वाक और जैन भी वेदकी निन्दा करने के ही कारण पंडित समाज में नास्तिक शब्दसे प्रसिद्ध होगये हैं । परन्तु
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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