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________________ ( ५८३ ) अर्थात्-उत्पत्तिसे पहले यह संसार एक अद्वितीय सदूप (आस्ति रूप) में था उसीको एक प्राचार्य कहते हैं कि यह संसार उत्पत्तिसे पहले असत् (नास्ति) रूपमें था, इसलिये असतसे सा (अभावसे भाव) होता है । इस कार अमित मोलको मारिन कहा है जो संसारके मूल कारण सप्तको स्वीकार करता है। और जो असत् (अभाव-शून्य) से उत्पन्न मानता है उसको नास्तिक कहा है । गीतामें यही इस प्रकार कहा गया है "असत्यम प्रतिष्ठन्ते जगदाहुरनीश्वरम् । अपरस्पर संम्भूतं किमन्यत्काम हेतुकम ॥" इस नियमसे तो सिया बौद्ध दर्शनके अन्य सभी दर्शन जो अस्तिवादी (भावसे संसारकी उत्पत्ति मानने वाले हैं) आस्तिक कहे जा सकते है. क्योंकि चार्वाक दर्शन भी चार पदार्थोकी सत्ता (आस्तिकत्व) से ही सारे जगत् (जड़-चेतन) का परिणाम मानता है। __ शंकराचार्य ने भी अपने उपनिषद्भाष्य तथा शारीरिकभाध्यम श्रास्तिक और नास्तिक शब्दका ऐसा ही अर्थ किया है। वे नास्तिक, नासिक इत्यादि शब्दोंसे बौद्धोका आहान करते हैं, क्योंकि ये ही लोग उत्पत्तिसे पहले जगत्का प्रभाव मानते हैं "तथाहि एके वैनाशिका आहुः वस्तुनिरुप यन्तोऽ. सत्सद्भावमानं + + सद्भावमात्र प्रागुत्पत्तेस्तत्वं कथयन्ति चौद्धाः ( छा० ६.११ ) सोऽर्द्ध वैनाशिक इति वैनाशिकत्वस्यसाम्यात्सर्ववैनामिकत्वसाम्यात् सर्ववैनाशिकराद्धान्तो नितरामुपेक्षि तव्य इति + + + तत्रैते त्रयो बादिनो भवन्ति केचित् सर्वास्तित्ववादिनः केचित् विज्ञानास्तित्त्व
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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