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________________ ¦ ( ५७४ ) ग्रन्थोकी रचना बहुत काल पश्चात पंडितोंने किया है । परन्तु वात्स्यायन भाष्यके अनुसार जिसका प्रमाण हम इसी प्रकरण में दे चुके हैं। मुक्तात्मा का नाम ही ईश्वर है। जो कि हमें अभी है ही । तथा च. "ईश्वरः कारणम्" यह सूत्र पूर्व पक्षका है इसका उत्तर सूत्रकारने दिया है कि रेटको फलदाता माना जाएगा तो बिना कर्मके भी फलकी प्राप्ति होगी। क्योंकि ईश्वरवादियों के मतभ Farst rara क्रिया आदि नित्य है। अतः जीवको नित्य ही फल मिलना चाहिए I यह उत्तर अत्यन्त सारगर्भित है । इसका भाव है कि ईश्वरकी इच्छा आदिको नित्य मानोगे तब तो बिना कर्म के फल प्राप्त हो सकेगा। और यदि उसकी इच्छा क्रिया आदिको क्षणिक मानोगे तो ईश्वर विकारी व परिणमन शील हो जायेगा । पुनः वह साधारण जी की तरह जीव ही सिद्ध होगा । अतः ईश्वर कर्मफल दाता नहीं है, यदि ईश्वरवादी कहे कि "तत्कारित्वात" अर्थात् ईश्वर ही कर्म कराता है, तो यह "हेतु" तो दुष्ट हेतु है । क्योंकि ईश्वर तो कर्म कराये और उसका फल विचारे जीव भोगें यह कहांका न्याय है। अतः गौतम मुनि कहते हैं कि free fea नहीं हो सकती। यदि इस सूत्रका उपरोक्त अर्थ न किया जाये तो ईश्वर अन्यायी, कर. अत्याचारी सिद्ध होगा। क्योंकि वह परतन्त्र जीवोंको व्यर्थं ही फल देता है। जब ईश्वर कर्म कराता है। तो फल भी उसी करानेवाले ईश्वरको मिलाना चाहिये। वास्तिकवाद" कारने इस सूत्र का विल्कुल विपरीत अर्थ किया है। उस पर कर्म फल प्रकरण में विचार करेंगे। ܦ vu ܽ P
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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