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________________ ( ५५६ ) अमें कर्मका होना असंभव है क्योंकि अट अचेतन है और यदि श्रचेतन चेतन से अधिष्ठित न हो तो वह स्वतंत्रता से न तो प्रवृत्त ही हो सकता और न किसीको प्रवृत्त करा सकता है क्योंकि (करपादके मनमें) चैतन्य उत्पन्न न हुआ हो उस अवस्था में आत्मा तो अचेतन ही है। यदि अष्ट आत्मामें समवावी है ऐसा स्वीकार कर लो, तो भी वह अणुओं में कर्मका निमित्त नहीं बन सकता का बाग ही नहीं है। यदि कहोगे किश्रयुक्त पुरुषके साथ उसका (अणुओं का ) सम्बन्ध है । तो वह संबंध नित्य सिद्ध होगी, क्योंकि आपके यहां और कोई नियामक नहीं है। इस प्रकार कर्मका कोई नियत नियम नहीं मिलने से agrat meकर्म नहीं होगा। कर्मके अभाव से कर्मसे बनने वाला संयोग नहीं होगा। और संयोगके न होने से उससे होने बाला कार्य समूह भी उत्पन्न नहीं होगा । इसी प्रकार प्रलय काल में विभाग की उत्पत्तिके लिये कोई निमित्त देखने में नहीं आता क्योंकि वैशेषिक केमतमें) अष्ट भोगकी सिद्धिके लिये है प्रलयकी सिद्धिके लिये नहीं है। इसीलिए निमित्त के अभाव से अणुओं में संयोगकी या विभाग की उत्पत्तिके लिए कर्म नहीं बन सकता संयोग और वियोग के अभाव से उनसे होने वाले सृष्टि और प्रलयका प्रभाव स्वयं सिद्ध हो जाता है इसलिए परमाणुवाद युक्त है । उपरोक्त सूत्र और भाष्य में स्पष्ट प्रकट है कि वेदान्त-सूत्रके कर्ता तथा उसके भाष्यकार स्वामी शंकराचार्य दोनों ही वैशेषिकको अनीश्वरवादी मानते थे। "भारतीय दर्शनका इतिहास" नामक पुस्तक में देवराजजी ने लिखा है कि "इस आलोचना से मालूम होता है कि सूत्रकार और शंकराचार्य दोनों वैशेषिकको अनीश्वरवादी समझते थे. क्योंकि ईश्वर परमाणुओं के प्रथम संयोगका 1
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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