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________________ ( ५५७ ) कारण होता है यह त धालोचनामें नहीं उठाया गया है । ३.३ तथा पू० २५३ पर श्राप लिखते हैं कि-- वैशेषिक सूत्रोंमें ईश्वरका वर्णन नहीं है । विद्वानोंका अनुमान है कि वैशेषिक पहले अनीश्वरवादी था। वास्तवमें न्याय और वैशेषिक दोनों में जड़वादी प्रवृति पाई जाती है। ___ तथा पृ. २५ पर लिखते हैं कि न्याय वैशेपिकका मत श्रोत या वेदमूलक नहीं है । उपनिषदोंमें ब्रह्म और मुक्त पुरुषके आनंद मय होनेका स्पष्ट वर्णन है। ___ तथा महाभारत मीमांसा (रायसाहबने) लिखा है कि "उपनिषदमें परब्रह्म वाची शब्द वात्मा है। श्रात्मा और परमात्माका भेद उपनिषद्को मालूम नहीं है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि न्याय और वैशेषिक, अवैदिक दर्शन हैं | क्योंकि ये अात्माको आनन्दमय नहीं मानते है । तथा भारतीय दर्शन में बल्देव उपाध्याय "लिखते हैं कि वैशेषिक मतमें परमाणु स्वभावतः शांत अवस्थामें निष्पन्द रूपसे निवास करते हैं। उनमें प्रथम परिस्पन्दका क्या कारण है। प्राचीन वैशेषिक लोग प्राणियों के धर्माधर्म रूपको इसका कारण बतलाते हैं। अहणकी दार्शनिक कल्पना बड़ी विलक्षण है । अयस्कान्तमणि की ओर सूईको स्वाभाविक गति, वृक्षोंके भीतर रसका नीचेसे ऊपर चढ़ना. अग्निकी लपटोका ऊपर उठना, चायुकी तिरछी गति मन तथा परमाणुओंकी श्राद्य स्पंदनात्मक क्रिया--अटके द्वारा जन्य बतलाई जाती है। पर पीछेके आचार्योंने अष्टको सहकारितासे ईश्वरकी इच्छासे ही परमाणुओंमें स्पन्दन तथा तजन्य सृष्ट्रि क्रिया मानी है। यहां भी स्पष्ट है कि वैशेषिक तथा उसके प्राचीन आचार्य
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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