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________________ ( २५५ ) वैशेषिक दर्शन भारतीय दर्शनों में वैशेषिकदर्शनका भी मुख्य स्थान है । - इसके रचयिता करदमुनि कहे जाते हैं। इनका जन्म कब और कहां हुआ यह भी निश्चित नहीं है । परन्तु वेदान्त सांख्य आदि दर्शनोंसे यह प्राचीन है यह बात निश्चित है। में भी है। उसके निम्न शेष कारण हैं । (१) वैशेषिकदर्शनमें न तो ईश्वर आदि शब्दोंका व्यवहार हुआ हैं, और न उसकी सृष्टि रचनामें ही आवश्यक्ता समझी गई है। (२) कर्मफलके लिये तथा जगत्रचना के लिये वैशेषिकने ईश्वर के स्थान की कल्पनाकी है। (३) प्राचीन आचार्योंने तथा भाष्यकारोंने इस दर्शनको भी अनीश्वरवादी ही मानते है। अतः अंतरङ्ग और बहिरन परीक्षासे यह स्पष्ट सिद्ध होजाता है कि वैशेषिकदर्शन भी ईश्वरका बिरोधी था सर्वप्रथम हम बहिरन परीक्षा करते हैं उसके लिये हम प्रथम वेदान्तसूत्रका प्रमाण उपस्थित करते हैं । इसका भाष्य करते हुये श्री शंकराचार्यने लिखा है कि--- L 'परमाणु जगतका कारण है करणादिका यह सिद्धान्त है परन्तु यह वन नहीं सकता, क्योंकि परमाणु उसके मत में स्वयं क्रिया नहीं कर सकता, और बिना क्रियाके जगत उत्पन्न नहीं होगा यदि आद्यकर्मका कारण अ मानें (जैसा कि कणाद मानता हैं) तो भी जगत नहीं बन सकेगा क्योंकि फिर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि वह कर्म आत्मा में है या अणुमें । दोनों प्रकार से
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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