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________________ ( ५५४) आपने यह प्रश्न किया है कि योगियों को या मुक्तात्माओं को तो चाँद सूरजका कर्त्ता जैन आदि भी नहीं मानते पुन: यह अर्थ किस प्रकार ठीक हो सकता है । उतर- आपके इस प्रश्नका उत्तर स्वयं सूत्रकारने दिया है. यहां यही प्रश्न किया गया है कि एवं तहिं स हि सर्ववित् सर्वस्य कर्ता इत्यादि श्रुतिवाघः मुक्तात्मनः प्रशंसा उपासासिद्धस्य वा । १ । ६५ अर्थात् जब आपने ईश्वरका खंडन कर दिया तो सहि सर्ववित् सर्व कत्ता अर्थात् वही सर्वज्ञ और सर्वकर्ता हैं, आदि श्रुतियोंके साथ विरोध होगा । इसका उत्तर आचार्य देते हैं कि विरोध नहीं हैं क्योंकि उन श्रुतियोंमें जीवन मुक्तात्माओं की अथवा योगियोंकी प्रशंसा मात्र है । उन श्रुतियों का विशेष विवेचन हम पहले कर चुके हैं। स्वयं आस्तिकवादके लेखकने ही आचार्यको यौ और पृथ्वी आदिका कर्ता माना है । तो क्या वास्तवमें आचार्य इनका कर्त्ता है । इस पर कहा जाता है कि बनानेका अर्थ उपदेश देकर उनका प्रकाश करना है। ठीक यही अर्थ कर्त्ता यहां यह जीवन मुक्त जीवोंको उपदेश देकर इनका ज्ञान कराता है यही उसका जगत कर्तापन हैं । जैन शास्त्रों में भी उनको कर्ता आदि लिखा है । यथा विश्वयोनि farara कारणं कर्ता, भवान्तक, हिरण्यगर्भ विश्वभूद् विश्वसृज । ( जिनवाणी संग्रह ) Minister परिभाषामें इसीको अर्थवाद कहते हैं यहां भी यही भाव है, जो सांख्याचार्यका है। अर्थात वह मुक्तात्मा उपदेश द्वारा विश्वका ज्ञान करानेसे विश्वके कर्त्ता हैं। यही वैदिक मान्यता है। जिसको हम पहिले सिद्ध कर चुके हैं। अतः यह सिद्ध हुआ कि सांख्य दर्शनमें इस काल्पनिक ईश्वर के लिये कोई स्थान नहीं हैं। 1 I
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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