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________________ ३नका, अभिप्राय यह है कि यदि कोई ईश्वर है तो यह कैसा है, वह मोक्ष प्राप्त कर चुका है या बद्ध है। यदि ईश्वर मुक्त है तो उसे कभी कोई भी काम करनेकी न तो इच्छा होगी और न प्रन्ति । और पुनः आपका ईश्वर चिना इच्छाके कैसे सृष्टि बना सकता है। यदि कहोंकि ईश्वरकी अभी मुक्ति नहीं हुई है तो फिर पह भी हम अबोध जीवोंकी तरह जरासी शक्ति रखने वाला कोई जीव होने के कारण न तो सृष्टि ही बना सकता है और न पक्ष पात द्वैष और दुःखसे ही कर सकता है । इरा पायन कहो कि, जिन शास्त्रों में ईश्वरका कथन है वे क्या झूठे हैं। तो इस का उत्तर यह है कि ये सब शास्त्र मुक्त या सिद्ध आत्माओं की प्रशंसाके लिये उन्हें ईश्वर बताते हैं। तुम्हारे सृष्टिकर्ता ईश्वरके लिये वे कुछ नहीं कहते हैं। इन तीनो सूत्रोंसे भी महर्षि कपिलने ईश्वरका स्पष्ट खंडन किया है । और क्या प्रागे चलकर इस दर्शन के पाँचचे अध्यायमें कपिलजीने स्पष्ट कह दिया है कि प्रत्यक्ष, अनुभान, और शब्द इन तीनों ही प्रमाणोंसे ईश्वर सिद्ध नहीं होता। ईश्वर खंडनमें यहां ये सूत्र हैं "प्रमाणा भावानात् सिद्धिः ।" १० ॥ "सम्बन्धाभावान्नानुमानम्” ११ ।। "श्रुति रपि प्रधान कार्यत्वस्य" । १२ ।। प्रथम सूत्रका तात्पर्य यह है कि ईश्वरास्तित्वमें कोई भी प्रत्यक्ष प्रादि प्रमाण नहीं है । इसलिये वह आसिद्ध है। अब यदि यह कहा जाय कि अनुमान श्रादिप्रमाणोंसे ईश्वरकी सिद्धि है तो भी ठीक नहीं क्योंकि धूमादिकी तरह उसका किसीके साथ सम्बन्ध प्रसीत नहीं होता. अतः अनुमानसे भी ईश्वर प्रसिद्ध है। अब रहगया शब्द प्रमाण वह भी ईश्वरको संसारका का नहीं मानता
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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