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________________ ( ५४४ ) दर्शन परिचय और सांख्य दर्शन दर्शन परिचयके विद्वान लेखकने लिखा है कि "सांख्य दर्शनको देखने पर यह स्पष्ट विदित होता है, कि उस में खूब खूब ईश्वरका खंडन किया गया है। सांख्यकारिकामें भी ईश्वरका खंडन किया है। छहाँ दर्शनों के टीकाकार प्रख्यात दार्शनिक वाचस्पति मिश्मने तो अपनी सांख्य तत्व कौमुदीमें एक बार ही ईश्वरको उड़ा दिया है। सांख्य दर्शनके प्रथमाध्यायका १३ वां सूत्र है-"ईश्वरासिद्ध" इस सूत्रका अभिप्राय यह है कि ईश्वर सिद्ध ही नहीं होता । प्रत्यक्ष प्रमाणका लक्षण करते हुए यह सूत्र आया है । पहले सूत्रमें दर्शनकारने लिखा है कि बाहरकी किसी भी चीजसे इन्द्रियोंका सन्निकर्ष या सम्बन्ध होने से प्रत्यक्ष ज्ञान होता है ।" इस लक्षण पर ग्रह संदेह उठाया गया है कि नहीं यह लक्षण ही ठीक नहीं है क्योंकि ईश्वर के पास तो कोई इन्द्रिय नहीं है और वह सब पदार्थोंका प्रत्यक्ष कर लेता है इसी शंकाका उत्तर देते हुए दर्शनकार कहते हैं। --ईश्वरा सिद्धे" अर्थात् जबकि ईश्वर ही प्रामाणिक या प्रसिद्ध है तब उसकी काहेकी इन्द्रियों और उसका कैसा प्रत्यक्ष ज्ञान ? किन्तु सांस्य य सूत्रीकी समालोचना करनेसे तो दिलमें यह! बात बैठती है कि सांख्यमें निरीश्वरवाद भरा पड़ा है। "ईश्वरासिद्ध के आगे वाले सूत्रों पर ध्यान देनेसे निरीश्वरवादकी पूरी पुष्टि होती है। "मुक्त बद्धयोरन्यतरा भाचानतत् सिद्धिः" ६३ ॥ "उभयथाप्य सत्करत्वम् ।" ६४॥ "मुक्तात्मनः प्रशंसा उपासासिद्धस्य का ६५ || “उभयश्चाप्य सत्करवा Meena
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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