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________________ ( ४४३ ) अपि च करुणा प्रेरित ईश्वरः सुखिन एवं जन्तून सृजेदत्र कर्म विचित्राद्वैचित्र्यम् इति चेत् कृतमस्य प्रेक्षावतः कर्माधिष्ठानेन | इत्यादि । अभिप्राय यह है कि जब से कपिल मुनि हुये उस समय से आज तक के सभी विद्वानों ने यह माना है कि सांख्य दर्शन अनीवादी है । महाभारत के प्रमाण से यह सिद्ध होता है, कि कपिल लोग न सिर्फ अनीश्वरवादी थे अपितु वे ईश्वर के विरुद्ध खुले आम प्रचार भी करते थे । तथा इस विषय में शास्त्रार्थ भी करते थे । ये सम्पूर्ण ऐतिहासिक प्रमाण इतने प्रवल हैं कि कोई बुद्धिमान इनका निरादर नहीं कर सकता। इसके पश्चात् भारतीय दर्शनकारों ने भी तथा उन दर्शनों के एवं सांख्य के भाष्यकारों ने भी इसकी पुष्टि की है कि यह दर्शन ईश्वर का विरोधी है। इसके अलावा जैन, बौद्ध आचार्यों ने भी इसको अनीश्वरवादी लिखा है। अर्थात् श्री शङ्कराचार्य श्री रामानुजाचार्य, माधवाचार्य. कुमारलाचार्य, आदि सभी श्राचार्यों ने तथा वाचस्पति मिश्र जैसे महान सभी विद्वानोंने इसकी अनीश्वरवादी माना है। इसके पश्चात् संसारके सभी प्राचीन भाष्यकारोंने भी ऐसा ही माना है वर्तमान समयके सभी स्वतन्त्र विचार वाले विद्वानों का तथा सभी ऐतिहासिक विशेषज्ञों का यही मत है। अतः यह स्पष्ट सिद्ध है कि सांख्य दर्शन ईश्वरका कट्टर विरोधी है परन्तु फिरभी यह बहिरंग परीक्षा है अतः अब हम इसकी अंतरंग परीक्षा करते हैं। क्योंकि वर्तमान के कुछ साम्प्रदायिक महाशयों का यह हठ है कि सांख्य दर्शन भी sacarat है. ! समय
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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