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________________ ( ५४२ ) यस्तु परमेश्वरः करुणया प्रवर्तक इति परमेश्वरास्तित्य घादिनां डिंडिमः स प्रायेण गतः विकल्पानुपपतेः । शक्तिः सृष्टेः प्राक् प्रवर्तते सृष्टयुत्तरकाले वा । श्राधे शरीराद्यभावेन दुःखानुपत्तौ जीवानां दुःख ग्रहशोच्छानुत्पत्तिः । द्वितीये परस्पराश्रय प्रसंगः करुणया सृष्टिः सृष्टया च कारुण्यमिति ॥ अर्थात- जो लोग सृष्टि रचना में ईश्वरका दयाभाव कारण है इस प्रकार बिगुल बजाते फिरते थे वह अब हवा हुआ। क्योंकि प्रश्न यह है कि ईश्वरकी प्रवृत्ति जगत से पहले थी या जगतके पश्चात् प्रवृत्ति हुई । यदि प्रवृत्ति पहले हुई तो करुणाका अभाव सिद्ध होगया क्योंकि सृष्टिसे पूर्व कोई भी दुखी नहीं था फिर गया किस पर आई। यदि कहो उसकी प्रवृति बादमें होती हैं तो जगत कर्त्ता न रहा क्योंकि उसकी प्रवृति से पूर्व ही सृष्टि थी। तथा यहां करुणा द्वारा जगत और जगतसे करुणा होने पर अन्योन्याश्रय दोष भी हैं। तथा वैदिक दर्शनके सुप्रसिद्ध तार्किक शिरोमणि वाचस्पति मिश्रने सांख्यकारिका नं०५७ की टीका करते हुए उपरोक्त प्रश्नोंके अलावा एक यह भी प्रश्न उठाया है कि यदि यह मानभी लिया जाय किं जगत्रचना में ईश्वर की दया ही कारण है फिर भी यह प्रश्न होता है कि उसने सब जीवोंको सुखी क्यों न बनाया यदि यह कहो कि विचित्रता कर्मानुसारहें तब ईश्वर तथा ईश्वरको दया कारण न रहा क्योंकि इस अवस्थामें ईश्वर अकिंचित कर रहा तथा जब कमका ही पल है तो दया न रही।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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