________________
( ५१८ )
संभव ही नहीं हो सकती । क्या कभी सूर्यमें अंधाकारका संभव हो सकता है ? कदापि नहीं । यदि कहो कि जीवों को भ्रान्ति होती है तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि वेदान्त मत में ब्रह्म के सिवाय जीवों की पृथक सत्ता ही नहीं है। यदि भ्रान्ति स्थान का कारणरूप पदार्थान्तर स्वीकार करते हो तो अद्वैत सिद्धान्त को हानि पहुंचेगी और द्वैतवाद की सिद्धि हो जायगी ।
कदाचित् कारणान्तर न होने से ब्रह्म का स्वाभावरूप अविद्या मानी जाय तो यह भी संभिषित नहीं है। विद्यास्वभाव वाले ब्रह्म का अविद्यारूप स्वभाव हो ही नहीं सकता | विद्या और अविद्या परस्पर विरोधी है। दोनों विरोधी स्वभाव एक ब्रह्म में कैसे रह सकते हैं ? यदि अविद्या को वास्तविक मानोगे तो उसका विनाश किससे होगा ? आगमोक्त ध्यान स्वरूपज्ञान वगैरह से अविद्या का नाश हो जायगा ऐसा कहते होतो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि नित्यज्ञानस्वरूप ा से अतिरिक्त ध्यानस्वरूप ज्ञानव गैरह है ही कहां कि जो अविद्या का नाश करें ? अतः इस मायाबाद की अपेक्षा तो बद्धों का महायानिकवाद ही ठीक है, जिसमें कि नील पीत आदि के वैचित्र्यका कार्य कारण भाव दिखाया गया है।
अज्ञानवाद
वेदान्तर्गत अज्ञानवादी कहता है कि यह प्रपंच अज्ञान से उत्पन्न होता है और ज्ञान के द्वारा उसका विनाश होता है । मृग जल या प्रपंच के समान |
मीमांसकों का उहापोह
मीमांसक कहता है कि कुलालादि व्यापार स्थानीय अज्ञान, घटस्थानीय जगत् और मूलस्थानीय ज्ञान मानेंगे तो भी जगत्