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________________ (५१६ ) उत्पत्ति और विनाश के योग से अनित्य मात्र सिद्ध होगा किन्तु अत्यन्ताभाव रूप असत् सिद्ध न होगा । दूसरी बात ! ज्ञानसे जगत् का नाश होता है तो वह ज्ञान कौनसा है ? आत्मज्ञान या निष्प्रपंच आत्मज्ञान ? केवल' प्रात्म झान तो विरोधी न होने से जगत का विनाशक नहीं बन सकता निष्प्रपंच आत्मज्ञान को कदाचित् नाशक माना जाय तो उसमें आत्मज्ञान अंश तो अविरोधी है, । निष्प्रपंच माने प्रपंच का प्रभाव जब तक प्रपंच विद्यमान है तब तक उसके प्रभाव का ज्ञान कैसे हो सकता है ? उस झान के उत्पन्न हुय विना प्रपंच का नाश भी नहीं हो सकता। अतः अन्योन्याश्रयरूप दोष की आपत्ति प्राप्त होगी। इस लिये ज्ञान से भी जगन् की सत्ता का नाश नहीं हो सकता ! अबकि जगत पात्मज्ञान की तरह मत सिद्ध होजायगा तो अद्वैतवाद सिद्ध न ही कर द्वैतवाद की सिद्धि हो जायगी । मृग जल तो पहलेसे ही असत हैं अतः उसके नाशका तो प्रश्न ही नहीं ठहरता है। इसलिये यह दृष्टान्त यहां लागू नहीं पड़ता है। इत्यतिमतनिरासः । (शा० दी० १।१।५ पृ० १११) अर्द्ध जरतीय अद्वैतवादीका पूर्वपक्ष उपनिषद्को मानने वाला वेदान्ती अर्द्धजातीय अद्वैतवादी कहा जाता है । वह कहता है कि ब्रह्म या आत्मा स्वयं ही अपनी इकला से जगत् रूप में परिणत हो जाता है । जिस प्रकार बीज वृक्ष रूप सच्चे परिणाम को प्राप्त करता है । उसी प्रकार श्रात्मा भी श्राकाशादि भिन्न २ जगद् रूप में परिणत हो जाता हूँ । नामरूप भिन्न २ होते हुये भी मूल कारण रूप एक आत्मा का ही यह संघ विस्तार है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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