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________________ ( ५०२ ) सारांश सारांश यह है कि मीमांसकों की निम्न लिखित मान्यतायें सिद्ध हैं। (१) इस संसारकी वास्तविक स्वतन्त्र सत्ता है यह भ्रम, विज्ञानमात्र मायामात्र विवर्त, अथवा परिणाम, मिथ्या. स्वप्न, आदि नहीं है। . (6) यह जगत अनादि निधन है न यह कभी उत्पन्न हुआ है और न इसकी कभी प्रलय ही होगी। (३)का मान दाता कोई ईरानि नहीं है, प्रमिनु कर्म स्वयं ही फल प्रदान की शक्ति रखते हैं अथीत कों से अपूर्व (मस्कार) होता है और उस अधुर्च से फल प्राप्त होता है। तथा जगत नित्य होने से उसके कर्ताधरता की भी आवश्यक्ता नहीं है इसलिये ईश्वर नहीं है। (आत्मा प्रत्येक शरीर में पृथक २ है और वे अणुपरिमाण नहीं है अपितु महत परिमाण है। (५) वेदों में जो सृषि उत्पत्ति विषयक कथन प्रतीत होता है वह वास्तविक नहीं है अपितु अर्थवादमात्र है अर्थात भावुक भक्तों की स्तुति मात्र है। उपनिषद् व वेदान्त दर्शन मीमांसा के पश्चात् दूनरा बैंदिफदर्शन वेदान्तदर्शन है इसको उत्तर मीमांसा भी कहते हैं जिस प्रकार मीमांसा में ग्राह्मण ग्रन्थों के यज्ञादि का समन्यव किया गया है उसी प्रकार वेदान्तमें औपनिषद श्रुतियों का समन्वय किया है जिस समय बादरायण ने यह वेदान्त शारत्र बनाया था इस समय भारतवर्ष में पंद्धो का साम्राज्य थ1. अर्थान अनात्मवादका बोल बाला था उपनिषदों
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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