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________________ ( ५०१ ) प्रलय सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान वेदतीर्थ श्री पं० नरदेवजीने अपनी पुस्तक, ऋग्वेदालोचन, में लिखा है कि--- वेदान्त सूत्रकार बादरायण व्यास और उनके भाष्यकार शंकराचार्य का नित्यत्व स्वीकार करते हैं. किन्तु एक बात fafe कहते हैं कि स्वयं शब्द नित्य नहीं हैं वे जिस वस्तु जाति के वाचक हैं वह जाति नित्य है. इसलिये इन्द्र आदि देवताओंके नाम अनित्य हैं तो भी वेदों के नित्यत्व में बाधा नहीं पड़ती क्यों कि— इन्द्र आदि देवताओंकी जाति नित्य है।" पु० ६३.६४ आगे आप लिखते हैं कि मीमांसाकार का मत है कि के हो अघि लोग अपनी स्मृति के बल पर पुनः वेदों का उद्धार करते हैं ४०६५ उपरोक्त लेख से यह स्पष्ट है कि वेदान्तदर्शन कार व्यास तथा जैमिनि और उनके भाष्यकार श्री शंकराचार्य आदि सभी विद्वानों ने इस जगन की एक देशीय प्रलयको स्वीकार किया है क्योंकि उन के मत में वेदो कथित सभी पदार्थ जातिरूपसे नित्यहैं तथा व्यकि रूप में नाशवान है अतः पृथ्वी चन्द्र सूर्य, मनुष्य, पशु आदि सभी जातिरूप से नित्य सिद्ध होगये । अतः इनसबका एकदम नाश होनेका तो प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता । यहीं वैदिक मान्यता है । 4 इसी आचार्य जैमिनि ने स्पष्ट कर दिया, उन्होंने प्रलयका अर्थ इस पृथ्वी के एक खंड ( प्रान्त का प्रलय होना माना है तभी तो घेोद्धारक ऋषि बचे रह गये थे। जिन्होंने अपने स्मृति बल से वेदों का पुनरुद्धार किया जैनशास्त्र भी ऐसी प्रलयको स्वीकार करते हैं।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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