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________________ ( ४९७ ) मीमांसा दर्शन वैदिक दर्शनों में दो ही दर्शन वैदिक हैं। एक मीमांसा और दूसरा वेदान्त । इनको पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसाके नाम से कहा जाता है. शेष चार दर्शनका नाम मात्र लेते हैं परन्तु उनके सिद्धान्तों की न तो पुष्टि करते हैं और न विशेष उल्लेख ही । इन दो वैदिक दर्शनों में भी वेदान्तदर्शनका सम्बन्ध विशेषतया उपनिषदोंसे है सहिताओं से नहीं है । परन्तु मीमांसाका सम्बन्ध एक मात्र वैदिक संहिताओं से है। तथा ऐतिहासिक दृष्टि से भी मीमांसा दर्शन सबसे प्राचीन है हम ईश्वर विषयमें क्या लिखते हैं इसीपर प्रकाश डालते हैं। वेदान्तदर्शन श्र० ३२१४० व्यासजी लिखते हैं कि प धर्म्म जैमिविरत एव । अर्थात् जैमिनि आर्चाय का कथन है कि धर्म अपना फल स्वयं देता है अतः कर्मके लिये अन्य देवता या ईश्वर आदि की कल्पना व्यर्थ है अतः यह स्पष्ट है कि मीमांसादर्शनकार कर्मफल के लिये ईश्वर आदि की आवश्यकता नहीं समझता है। जैसा कि लिखा है । यागादेव फलं तद्धि शक्ति द्वारेण सिध्यति । सूक्ष्म शक्त्यात्मकं वा तत् फलमेवोप जायते ॥ (तन्त्र वार्तिक) अर्थात् कर्म में एक प्रकारकी सूक्ष्म शक्ति होती हैं वही शक्ति कर्म फल प्रदान में समर्थ है, अतः कर्मका फल कर्म द्वारा ही प्राम
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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