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________________ साओंकी आराधनाका शुक और व्यर्थ कर्मकाण्ड अथवा यज्ञ है। उस संख्यायसंख्यका और आडम्बरका इस समय अपनी संस्कृत के साथ जरा भी मेल नहीं बैठ सकता । उनमेंसे देव रूप और देव चरित्र आज कल के ज्ञान और नैतिक कल्पनाओंसे विल्कुल के मेल है। वर्तमान विज्ञान और समाजशास्त्रके साथ तुलना करने पर मालूम होता है कि वैदिक धर्म अनाड़ी समाजका था। ऐसी अंष्टता उस काल होम शोमा देने वाली और उस परिस्थित के अनुरूप थो । उन वेदोंकी इस समयकी सुधारण, और संस्कृति के साथ तुलना न करना ही अच्छा है । भास्कराचार्यका गणित वर्तमान गणितके सामने बिल्कुल अपूर्ण और क्षुद्र दिखता है. फिर भी उसकी ऐतिहानिक योग्यता और महत्ता कम नहीं है यही दशा वेदोंकी है। वेद उपनिषद् गीता और दशनोंका ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है परन्तु धर्तमान जीवनमें उन्हें मार्गदशक बनाना आत्मघाती ही ठहरेगा। ___ तर्क रन पं० लक्ष्मण शास्त्री द्वारा लिखित हिन्दु धर्मकी समीक्षासे; पृष्ट १५० । १५ । * १ ब्रह्ममश, पितृ तर्पण, श्राद्ध आदि धार्मिक विधियोंमें जनेऊ कभी दाहिने कसे (अपसव्य) और कभी वाये कंधेसे ( सब्य ) लटकता रखना पड़ता है इस कर्मको सव्यायसव्य कहते हैं | इससे इस शब्दका अर्थ होता है व्यर्थका त्रास या जान बूझ कर अपने सिर लिया हुश्रा उपद्रव ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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