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________________ ( ४६५ ) के साथ अर्थ करके वेदों को नये युग के अनुरूप बनाने का व्यर्थ घटाटोप किया है वेदोंकी गई बीता कल्पनाओंका पुनरुज्जीवन करके नये सामाजिक जीवनके लिये उपयोगी नवीन अर्थ निर्माण करनेके प्रयत्न में बौद्धिक दृष्टि से स्वामी जी को जरा भी यश नहीं मिला आर्य समाज एक तरह से इस्लाम की प्रतिक्रिया है । एकदेव. और १ वे और एक धर्म का संदेश नवीन युग के अनुरूप नहीं हो सकता । बारह सौ वर्ष पहिले मुहम्मद साहब ने जो संदेश अरबों को दिया वैसा ही संदेश अन्धानुकरण से इस विज्ञान प्रधान युग में देना अत्यन्त अप्रासंगिक है- 1 कुछ लोग कहते हैं कि मूल वैदिकधर्मका पुनरुज्जीवन करनेसे हिन्दुओं का सचा उत्कर्ष होगा। युद्ध-पूर्व-धर्मका संदेश देनेसे हिन्दू पहिले जैसे पराक्रमी बनेंगे। परन्तु यह एक ऐतिहासिक असत्य है कि बुद्धोत्तर काल में हिन्दू दुबल और होन चन गये थे। वास्तव में युद्धं तर काल में हिन्दू दुवल और हीन बन गये वास्तव में बुद्धोतर काल में ही हिन्दुयोंके तीन चार बड़े बड़े साम्राज्य हुए हैं। उतने बड़े साम्राज्य बुद्ध पूर्व कालमें कभी थे, इसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता है। (दूसरी बात यह है कि वेदोंकी कल्पनाओ से तो हिन्दू आगे और भी अधिक निकृष्ट बनेंगे। कारण वेदों सृष्टि-विषयक और समाज-जोवन विषयक विचार अत्यन्त छे और भ्रामक हैं सृष्टि और समाज सम्बन्धी भ्रामक विचारों को मानने से मनुष्य दुर्बल ही अधिक बनेंगे। कारण वेदों के सृष्टि विषयक और समाजके) कार्य-कारण भावका यथार्थ ज्ञानही मनुष्य को अधिक पराक्रमी और समर्थ बनाता है। यह सच है कि वेदोंमें ऐहिक जीवनको न प्रतिवादको और भौतिक साधनों को बहुत महत्व दिया है, परन्तु साथ हा निसग शक्तियों में अनेक देवता रहते हैं और उनकी लाला लहर से सृष्टिमें गहन और विघटन होता है. यह महान अज्ञान भी उनमें भरा हुआ है। इसी तरह उनमें देव
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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