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________________ ( ४६४ ) मिलता था। क्षत्रियों और वैश्यों को ब्राह्मण न मिलने पर मिलता था । शूद्र चाहे कितना भी कानून का पंडित न हो. सू ब्राह्मण उससे अच्छा है, यह सारी स्मृतियोंमें जोर देकर कहा गया है। स्मृतियों का कायदा है कि ज की और लगान की दर ब्राह्मण के लिए सब से कम होनी चाहिये । पुरोहिती विद्या वाले ब्राह्मणको सारे कर माफ थे। स्मृति कहती है कि न्याय दान करने के समय ब्राह्मण का मुकदमा मत्र से पहिले चलाया जाये । ब्राह्मणों का अपने से नीचे के वर्णों के व्यवसाय करने की आज्ञा थी परन्तु नीचे के वर्णों को विशेष कर शुद्रों को उच्च वर्ण के किसी भी को करने की मनाही थी। प्राणान्तिक आपत्ति के समय भी नीचे के वर्ग वाले के लिए उच्च वके उद्योग या व्यवसाय करना स्मृतियोंके अनुसार बड़ा भारी अपराध था । हिन्दू धर्म समीक्षा से पृष्ट १२६ - १३० "आर्य समाज और वेद धर्मका पुनरुज्जीवन" आर्य समाज वेदों की प्रमाणता स्त्रीकार करने और स्मृतिः पुराणोक्त धर्म का त्याग करके निर्माण हुआ पंथ है। यह वेदों के ब्राह्मण भाग को वेद नहीं मानता। इस पंथ वालों ने समझ रक्खा है कि केवल मन्त्र भाग ही सच्चा छेद है चूंकि ब्राह्मण भाग का विस्तृत कर्म-कराड इस युग में बिल्कुल मूर्खता पूर्ण है। इस लिये उन्होंने उसका वेदत्व ही निकाल फेंका। इस पंथ के मुख्य आचार्य स्वामी दयानन्दने वेदों का नया अर्थ लगाया है। उन्होंने वेदों को एकेश्वरवाद की पोशाक दी है। मन्त्र भाग में जहां पशु यक्ष का प्रकरण आता है। वहां उनका रूपात्मक अर्थ बिठाया है। स्वामी दयानन्द की दृष्टि से वेद पूर्ण प्रमामा हैं 1 स्वामी दयानन्दमेाचीन वेद मंत्रोंका बड़ी खीच तान
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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