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________________ ( ४८५ ) फल होते हैं··· अरडज जरायुज स्वेदज, उद्भिज सबका धीज पृथ्वी और पानी है, यही सृष्टि रचनाका अद्भुत चमत्कार है। इस प्रकार चार खानी, चार वाणी, चौरासी लाख जीव योनि, तीन लोक, पिण्ड, ब्रह्माण्ड सब निर्मित होते हैं" (दा० १३ । ३ । १० । १५) । परन्तु पंचीकरण से केवल जड़ पदार्थ अथवा जड़ शरीर ही उत्पन्न होते हैं। ध्यान रहे कि जब इस जड़ देहका संयोग प्रथम सूक्ष्म इंद्रियोंसे और फिर आत्मा से अर्थात् पुरुषसे होता है, तभी इस जड़ देहसे सचेतन प्राणी हो सकता है। यहां यही चाहिने पन्थोंमें वर्णित यह पंचीकरण प्राचीन उपनिषदोंमें नहीं है। हांदोग्योपनिपद्म पांच तन्मात्राएँ या पांच महाभूत नहीं माने गये हैं, किन्तु कहा है, कि 'तेज' अप (पानी) और अन्न (पृथ्वी) इन्हीं तीन सूक्ष्म मूल तत्वोंके मिश्रण से अर्थात् "त्रिवृत्करण" से सब विविध सृष्टि बनी है। और श्वेताश्वतरोपनिषद् में कहा है, कि अजामेकांलोहित शुक्ल कृष्ण ह्रीः प्रजाः सृजमानां सरूपा:" (श्वेता०४. ५) अर्थात् लाल (तेजो रूप), सफेद (जल रूप ) और काले ( पृथ्वीरूप) रंगों की (अर्थात् तीन तत्वों की एक अजा (बकरी) से नामरुपात्मक प्रजा (सृष्टि) उत्पन्न हुई । छांदोग्योपनिषद्के छठवे अध्याय में वेतकेतु और उसके पिताका सम्वाद हैं । सम्वाद के आरम्भ में ही श्वेतकेतुके पिताने स्पष्ट कह दिया है. कि अरे ? इस जगतके आरम्भ में एकमेवाद्वितीयं सत् के अतिरिक्त, अर्थात जहां तहां सब एक ही नित्य परब्रह्म के अतिरिक्त, और कुछ भी नहीं था । जो असत् (अर्थात नहीं है) उससे सम कैसे उम्पन्न हो सकता है ? अतएव आदिमें सर्वत्र सत् ही व्यप्त था । इसके बाद उसे अनेक अर्थात् विवि होने की इच्छा हुई और इससे क्रमश: सूक्ष्म तेज (अभि) आप (पानी) और अन्न (पृथ्वी)
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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