SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 504
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४७४ ) इसलिये पहले आकाश उत्पन्न हुआ। इसके बाद वायु की उत्पत्ति हुई क्योंकि उसमें शब्द और स्पर्श दो गुए हैं। जब वायु जोर से चलती है, तब उसकी आवाज सुन पड़ती है, और हमारी स्पर्शेन्द्रिय को भी उसका ज्ञान होता है। वायुके बाद अभि की उत्पत्ति होती है, क्योंकि शब्द और स्पर्श के अतिरिक्त उसमें तीसरा गुण रूप भी हैं। इन तीनों गुणों के साथ ही साथ पानी में चौथा गुण, रुचि या रस होता है इसलिये उसका प्रादुर्भाव अग्नि के बाद ही होना चाहिये, और अन्त में इन चारों गुणों की अपेक्षा पृथ्वी में गंध गुग्ण विशेष होने से यह सिद्ध किया गया है कि पानी के बाद ही पृथ्वी उत्पन्न हुई । यास्काचार्यका यही सिद्धान्त है निरुक्त (४१४ ) तैतिरीयोपनिषद् में आगे चल कर वर्णन किया गया है कि उक्त क्रम से स्थूल पंच महाभूतों की उत्पत्ति हो चुकने पर "पृथिव्या श्रोषधयः । श्रोषधीभ्योऽन्नम् । श्रनात्पुरुषः ” पृथ्वी से वनस्पति वनस्पति से अन्न और अन्नसे पुरुष उत्पन्न हुआ ( तै० २१) | यह सृष्टि पंच महाभूतों के मिश्रण से बनती है, इसलिए इस मिश्रण - क्रियाको वेदान्त प्रन्थों में पंचीकरण कहते हैं पंचीकरणका अर्थ 'पंचमहाभूतों में से प्रत्येकका न्यूनाधिक भाग लेकर सबके मिश्रण से किसी नये पदार्थका बनना है। यह पंचीकरण स्वाभवतः अनेक प्रकारका होसकता है। श्री समर्थ रामदास स्वामीने अपने दासबोध में जो वर्णन किया है वह भी इसी बत को सिद्ध करता है देखिये - "काला और सफेद मिलानेसे नीला बनता है काला और पीला मिलानेसे हरा बनता है (दा० है | ६ ४०) । पृथ्वी में अनन्त कोटि बीजोंकी जातियां होती हैं, पृथ्वी और पानीका मेल होने पर उन बीजोंसे अंकुर निकलते हैं, अनेक प्रकार की बेले होती हैं. पत्र पुष्प होते हैं। और अनेक प्रकारके स्वादिष्ट
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy