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________________ ( ४ ) अर्थात् -- अव्यक्त (प्रकृति ) जिसका बीज है' बुद्धि (महान) जिसका तना या पिंड है अहंकार जिसका प्रधान पल्लव है. मन और दस इंन्द्रियां जिसको अन्तर्गत खोखली या खोड़र है (सूक्ष्म ) महाभूत ( पश्च -तन्मात्रएं ) जिसकी बड़ी २ शाखाएं है , और विशेष अर्थात् स्थूल महाभूत जिसकी छोटी २ टहनियां हैं , इसी प्रकार सदापत्र , पुष्प और शुभाशुभ फल धारण करने वाला समस्त प्राणिमात्र के लिये प्राधार भूत यह सनातन वृहद् ब्रह्म वृक्ष है । ज्ञानी पुरुष को चाहिये, कि उसे तत्वज्ञान रूपी तलवार से काटकर एक दूक कर डाले. जन्म, जरा और मृत्यु उत्पन्न करने वाले संगमय पाशी का न करें और समय के तथा अहंकार को त्याग कर दे, तब वह नि:संशय मुक्त होता है संक्षेप में यही ब्रह्म वृक्ष प्रकृत्ति अथवा माया का खेल' जाला' या पसारा है । अत्यंत प्राचीन काल ह्री से ऋग्वेद काल ही से इसे वृक्ष कहने की रीति पड़ गई है और उपनिषदों में भी उसको 'सनातन अश्वत्थवृक्ष' कहा है (कठ ६१) परन्तु वेदों में इसका सिर्फ यही वर्णन किया गया है, कि उस वृक्ष का मूल ( परब्रह्म ) ऊपर है और शाखाएं (दृश्य सृष्टि का फैलाव ) नीचे हैं। इस वैदिक वर्णन को और साँख्यों के तत्वों को मिला कर गीना में अश्वत्थ वृक्ष का वर्णन किया गया है। इसका स्पष्टी करण हमने गीताके १५५१-२ श्लोकोंमें अपनी टीकामें कर दिया है। ___ ऊपर बतलाये गये पचीस तत्वोंका वर्गीकरण सांख्य और वेदान्ती भिन्न भिन्न रीतिसे किया करते हैं, अतएव यहां पर उस वर्गीकरणके विषयमें कुछ लिखना चाहिये । सांख्योंका यह कथन है कि इन पच्चीस तत्वोंके चार वर्ग होते हैं अर्थात् मूल प्रकृति प्रकृति-विकृति.' विकृति और न प्रकृति न विकृति । (१) प्रकृति तत्व किसी दूसरेसे उत्पन्न नहीं हुआ है. अतएव उसे 'मूल प्रकृति
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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