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________________ (४७) सूक्ष्म तन्मात्राएं और पांच स्थूल महाभूत द्रध्यात्मक विकार हैं और बुद्धि. अहंकार तथा इन्द्रियाँ केवल शक्ति या गुण हैं, ये सेईस तत्य व्यक्त हैं और मूल प्रकृति अव्यक्त है। साख्यों ने इन तेईस तत्वों में से आकाश तत्व ही में दिक और काल को भी सम्मिलित कर लिया है। वे 'प्राण' को भिन्न तत्व नहीं मानते, किन्तु जब सब इन्द्रियों के व्यापार प्रारम्भ होने लगते हैं. तष उसी को वे प्राण कहते हैं (सां का. २६) परन्तु बेदान्तियोंको यह मत मान्य नहीं है , उन्होंने प्राण को स्वतंत्र सत्व माना है ( वेसू०२।४।६।) यह पहले बतलाया जा चुका है, घेदान्ती लोग प्रकृति और पुरुष को स्वयभू और स्वतंत्र नहीं मानते । जैसा कि सांख्य-मतानुयायी मानते हैं, किन्तु उनका कथन है कि दोनों ( प्रकृति और पुरुष ) एक ही परमेश्वर की विभूतियां है । सांख्य और वेदान्त के उक्त भेदोको छोड़ कर शेष 'मृष्टि उत्पत्तिक्रम दोनों पक्षों को ग्राह्य है। उदाहरणार्थ, महाभारत में अनुगीता में ब्रह्म वृक्ष' अथवा 'ब्रह्मवन' का जो दो बार वर्णन किया है (मभा०३५१५०-२३, औरणा१२,१५ ) वह सांख्य तत्वों के अनुसार ही है। : अन्यक्क बीज प्रभवो बुद्धिस्कंधमयो महान् । महाहंकार विटपः, इन्द्रियान्तर कोटरा ।। महाभूत विशाखश्च विशेषप्रति शाखबान् । सदापणं; सदापुष्पः शुभाशुभ फलोदयः ॥ आजीव्यः सर्वभूतानां प्रमवृक्षः सनातनः । एवं बित्वा च भित्वा च तत्वज्ञानासिना बुधः ।। हित्वा सङ्गमयान् पाशान् मृत्यजन्मजरोदयान् । निर्ममो निरहंकारो मुच्यते नात्र संशयः॥
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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