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________________ ( ४४७ ) संतप्तेभ्यस्त्रीन् वेदान्निरमिमत-ऋग्वेदं यजुर्वेदं सामवेदमिति अग्नेॠग्वेद, वायोर्यजुर्वेदमादित्यात् सामवेदम् | (गो० ना० पू० भा० २ १ | ६) अर्थ-उस ब्रझने पांव से पृथ्वीका निर्माण किया । उदरमें से अंतरिक्ष और मस्तक में से स्वर्गका निर्माण किया। उसके बाद उसने तीनों लोकों को तपाया, उसमें से अग्नि, वायु और श्रादित्य इन तीनों दोषोंकी उत्पत्ति हुई। उसने पृथ्वी में से अनि अन्तरिक्ष में से वायु और स्वर्ग में से आदित्यको उत्पन्न किया । उसने तीनों देवोंको तपाया तो उसमें से ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद इन गीतों वेदोंकी उत्पत्ति हुई। ऋग्वेद, वायुसे यजुर्वेद, और आदित्य से सामवेद बना । , सभूयोऽश्राम्यत् भूयोऽतप्यत् भूय आस्मानं सपतपत्स मनस एवं चन्द्रमसतिरमिमत, नरवेभ्यो नक्षत्राणि, लोमस्य ओषधि वनस्पतीन् क्षुद्रेभ्यः प्रणिभ्योऽन्यान् बहून देवान् । (गो० त्रा० पू० भा० १।१२) अर्थ-उस ब्रह्मने भ्रमपूर्वक तप किया। मनसे चन्द्रमा, नखों से नक्षत्र रोम राजिसे औषधि तथा वनस्पति और शुद्र प्राणोंसे अन्य बहुत से देव उत्पन्न किये I धाता का सृष्टि क्रम १-ऋऋतु 3. सत्य ३- रात्रि ( अन्धकार ) ४- समुद्र ५-सम्वत्सर - काल ६- अहोरात्र सर्वभूत ७- सूर्य चन्द्र स्वर्ग ६- पृथ्वी १० अन्तरिक्ष } त्रैलोक्य
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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