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________________ ( ४४६ ) एव भवत् चैत्ररथं देवतं द्यूतं ज्योतिर्वाहतं छन्दस्तुणवत् त्रयत्रिशस्तीपौ ध्रुवासू दिशं हेमन्त शिशिरावृत् श्रोत्र मध्यात्मं शब्दश्रवणमितिन्द्रियान्वभवत् । ०० ११९२ 11 अर्थ-उसकी मकार मात्रा से ब्रह्मने इतिहास, पुराण, बोलने की सामर्थ्य वाक्य, गाथा, और वीरनरोकी गुण कथाएं उपनिषद् अनुशासन शिक्षा उपदेश वृधत्-बुद्धि वाला परिपूर्ण ब्रह्म, करत् सृष्टिकर्ता ब्रह्म गुहत छिपा हुआ अन्तर्यामी ब्रह्म महतपूजनीय ब्रह्म नत् फैला हुआ ये पांच महाव्याहृतियां शम शान्ति रक्षक ब्रह्म सर्व रक्षक मझ, ये दोनों पांच में मिलने से सात महाव्याहृति, स्वर से शान्ति उपजाने वाली नाना प्रकार की बी । आदि विद्याएं स्वर, नृत्य, गीत वादित्र बनाए और विचित्र गुण वाले दिव्य पदार्थो के समूह विविध प्रकाश बाली ज्योति बेद वाणी युक्त छन्द तीनों कालों में स्तुति किये गये तैंतीस देवतासृष्टि प्रलय रूप दो स्तोम-स्तुति, ऊंची नीची दिशाएं. हेमंत और शिशिर ऋतु श्राध्यात्मिक श्रोत्र शब्द और सुनने की सामर्थ्य, ज्ञान कर्म साधनरूप इन्द्रियां ब्रह्म बनाई । स खलु पादाभ्यामेव पृथिवीं निरमिमत । उदरादन्तरिचम् | मृदनों दिवम् । स तां त्रल्लोकानभ्यश्राम्यदम्यतपन्समतपत् तेभ्यः श्रान्तेभ्यस्तप्तेभ्यः सन्तप्तेभ्यस्त्रीन् देवान् निरमित वायुपादित्य मिति । स खलु पृथिव्या एवात्रिं निरमिमत अन्तरिक्षाद्वायुं दिव आदित्यं । सतस्त्रीन् देवानभ्यश्राम्यदम्यत्तपत् समतपत् तेभ्यः श्रान्तेभ्यस्तप्तेभ्यः :
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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