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________________ ( ४४५ ) तस्य तृतीयया स्वरमाश्रयादिव मादित्यं सामवेदं स्वरिति antaऋतु ज्योतिरध्यात्मं चक्षुषी दर्शनमितिन्द्रियाण्यन्व भवत् । (गो० ब्रा० भा० १११६) अथ उस ओंकार की तीसरी स्वर मात्रा से आ ने स्वर्ग लोक, आदित्य, सूर्य, सामवेद, स्वर, इस प्रकार की व्याहृति. जगति छंद दस दिशाएं सत्व रजस, तीन गुण, ईश्वर, जीव और प्रकृति इन सोलहों से युक्त सत्रहवां संसार यो सत्रह प्रकार की स्तुति, उत्तर दिशा, वर्षाऋतु अध्यात्म ज्योति दो आखें और रूप माइक इन्द्रियां उत्पन्न की। ५ - तस्य चकारमात्रयाऽऽपञ्चन्द्रमस पथर्ववेदं नक्षत्राणि, श्रमिति स्वमात्मानं जनदित्यं गिरसामानुष्टुभं छन्दः एकविंशं स्तोमं दक्षिणां दिशं शरदऋतु मनोऽध्यात्मं ज्ञानं ज्ञेयमितीन्द्रियान्यभवत् । (गे० ब्रा० पू० भा० १।२० ) अर्थ-उसको बकार मात्रा से ब्रह्मा ने पानी. अथर्म वेद, नक्षत्रश्र रूप अपने स्वरूप को उत्पन्न करते हुए ज्ञान, अनुष्टुप छन्द, पांच सूक्ष्म भूत, पांच स्थूल भूत, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच कर्मेन्द्रियां और अंतः करण ये २१ स्तोत्र स्तुति, दक्षिणदिशा. शरदऋतु आध्यात्मिकमन, ज्ञान, जानने योग्य वस्तु और इन्द्रियां उत्पन्न की। -- 'चन्द्रमा' तस्य मकार श्रत्येतिहासपुराणं वाको वाक्यगाथा, नाराशंमीरूप निषदोऽनुशासनमिति पृधत् कुग्दू गुहन् महत्तच्छमोमिति व्याहृतिः स्वरशम्यनानातंत्रीः स्वरनृत्यगीतकादित्रा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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