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________________ ( c ) असुर सृष्टि स इपा प्रतिष्ठा वित्वाऽकाम्यत-प्रजायेयेति । स तपोसप्यत । सोऽन्तर्वानभवत् । स जघनादसुरानसृजत । तेभ्योतृन्मये पात्रेऽन्नमदुहत । याऽस्य सातनूरासीत् । तापपाहत । स समिस्वाभवत् । (पृ. यजु० ते० प्रा० २।२६) अर्थ-~-उस प्रजापति को बैठने की जगह मिल जाने से उसने प्रजा उत्पन्न करने की इच्छा की । तप किया जिससे वह गर्भवान हुआ । अघन भाग में से असुरों को उत्पन्न किया और उनके लिये मिट्टा के पात्र में अन्न डाला, जो उनका शरीर था वह छोड़ दिया और उसका अन्धकार बन गया। अर्थात् रात्रि हो गई। मनुष्य सृष्टि सोऽकामयत प्रजा येयेति । स तपोऽतप्यत । सोऽन्तर्वा न भवत् । स प्रजन जादेव प्रजा असृजत । तस्मादिमा भूयिष्ठाः प्रजननाध्येन्तममृजत । ताभ्यो दारुमये पात्रेपयोऽदुहत् । याऽस्य सा तनूरासीत् वामपहस । सा ज्योत्स्नाऽभवत् । (व यजु० ते० प्रा० राइ) ___ अर्थ-उस प्रजापति ने प्रजा उत्पन्न करने की इच्छा की फिर तप किया यह गर्भवान बना। जननेन्द्रिय से मनुष्यादि प्रजा उत्पन्न की। जननेन्द्रिय के कारण से प्रजा बहुता हुई उसे काष्ठ पात्रमें दूध दिया, जो उनका शरीर था उसे छोड़ा वह ज्योत्स्ना-प्रकाश रूप बन गया ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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