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________________ मादुषं ह वै नामैततयन्मानुषं सन्मानुषमित्याचक्षते परोघेण परोक्षप्रिया इव हि देवाः । (ऐत. ब्रा० ३।३।६) अर्थ-मृगरूप प्रजापति ने मृगी में बी सिंचन किया. यह वीर्य बहुत होने में बाहर निकलकर पृथ्वी पर पड़ा. उमका प्रवाह चल कर ढालू जमीन में एक चित्त हुआ, जिससे तालाब बन गया । देवताओं ने प्रजापति का यह बोर्य दूषित न हो जाय इसलिये इस तालाबका नाम "मादुष" रख दिया। यही मादुषका मानुषपन है। लोगों ने पीछे भादुष शब्द में के द" के स्थान पर "न" कार जच्चारण किया जिससे मानुष शब्द (मनुष्य वाचक) बन गया। देवता परोक्ष प्रिय होते हैं इस लिये परोक्ष में जिस नकार का प्रवेश होकर मानुष शब्द बन गया। उसको देवताओंने स्वीकार कर लिया। तात्पर्य यह है कि प्रजापत्ति के द्वारा सिंचित वीर्य के तालाब में से मनुष्य सृष्टि उत्पन्न हुई। देव सृष्टि तदमिना पर्याद धुस्तनमरुतोऽन्वस्तदगिर्न प्राच्यावयत् तदग्निना वैश्वानरेण पर्यादथु स्तन्मरुतोऽधून्यस्तदग्निर्वैश्वानरः प्राच्यावयत्तस्य यद्रेतसः प्रथममुददीप्यत तदसाचादित्योऽभवद्यद् द्वितीय मासीत्तद् भृगुरभवतं वरुणान्यगृहीत तस्मात्स भृगु रुणि रथ यतृतीयमदीदेदिव त श्रादित्या अभवन । येणारा श्रासंस्तेगिरसोऽभवन् यदङ्गाराः पुनरवशान्ता उददीप्यन्त तद् वृहस्पतिरमन्त् । (ऐत. ब्रा० ३३१० अर्थ मनुष्य बनने के बाद जो प्रजापति का वीर्य अवशिष्ट
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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