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________________ . . व्यक्तिको दंदने लगे जो प्रजापतिको मारने में समर्थ हो । किन्तु अपने में ऐसा कोई शक्तिशाली उन्हें नहीं मिला, इसलिये जो घोर = उप्रशरोर वाले थे वे सभी मिलकर एक रूप हुए. अर्थात् सब मिल कर एक बार शरीर बीघ लगा. उसका नाम द्र रक्खा गया। यह शरीर भूतोंसे निष्पन्न हुआ इस लिये उसका नाम भूतवन् या भूतपति भी प्रसिद्ध हुआ। देवताओंने रुद्रस कहा कि- प्रजापतिने अकृत्य किया है इस लिये उसे वाणसे छेद डालो। रुद्र ने यह बात स्वीकार कर ली। देवताओंने उससे कहा कि इस कार्यके बदलेमें तुम हमसे कुछ माँगों । रुद्रने पशुओंका अधिपत्य माँगा । देवताओंने यह स्वीकार कर लिया जिससे रुद्रका नाम पशुवत या पशुपति प्रसिद्ध हुआ। __ प्रजापतिको लक्ष्य करके रुद्रने धनुष खींच कर वाण छोड़ा, जिससे मृग रूपी प्रजापति वारणसे विंध कर अधोमुखसे ऊंचा उछला, और आकाशमें मृगशिर नक्षत्र के रूपमें रह गया। रुद्रने उसका पीछा किया। वह भी मृग व्याधके तारेके रूपमें आकाशम रह गया । लाल वर्ण वाली जो मृगी थी वह भी श्राकाशमें रोहिणी नक्षत्रके रूपमें रह गई। रुद्रके हाथसे जो वाण छुटा था वह अणीशल्य, और पाँव रूप तीन अवयव वाला. होनेसे त्रिकाण्ड तारा रूपसे रह गया । श्राज तक भी ये आकाशमें एक दुसरंक पीछे घूमा करते हैं। मनुष्य सृष्टि . तद्वा इदं प्रजापते रेतः सिक्तमधावत् तत्सरोऽभवत् ते देवो अत्रुवन् मेदं प्रजापते रेतो दुषदिति यदब्रुवन्मेदं प्रजापते रेतो दुषदिति तन्मादुषमभवत् तन्मादुषस्य पादुषत्वम् ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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