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रहा उसको घनीभूत बनाने और उसमेंसे रहेहुए द्रवत्वको दूर करने के लिये देवों ने उस तालाब के चारों किनारों पर व्यभि प्रज्वलित की और वायु ने उसकी श्रार्द्रता को शोषित करने का प्रयत्न किया इतना करने पर भी वह वीर्य नहीं पका अर्थात् उसका गौलापन दूर नहीं हुआ । नव वैश्वानर नाम के अभि ने पकाने का काम किया और वायुने शोषण करना चालू रक्खा जिससे वह वीर्य पककर पिएडीभूत होगया उस पिएडमें से एक प्रथम पिंडिका उद्दीप्त हुई और प्रकाश करने लगी वह आदित्य-सूर्य बना । दूसरी पिटिका निकल। वह भृगु ऋषि बनी जिसको वरुण ने ग्रहण किया, जिससे भृगु वरुण कहलाया । तीसरी पिंडिका निकली उससे अदिति के सूर्य के सिवाय बाकी के पुत्र देव बने । जो बाग के अंगार बच रहे वे अंगिरा ऋषि बने और जो अंगर उत्कर्ष से fia हुआ। वह बृहस्पति बना ।
पशु सृष्टि
यानि परिचाणान्या संस्ते कृष्णाः पशवोऽभवन् या लोहनी मृतिका ते रोहिता, अथ यद् भस्माऽऽसीत् तत्परुष्यं पद् गारोगय ऋश्यउष्ट्रो गर्दभ इति ये चैतेऽरुणाः पशवस्ते च । (ऐत० ना० ३।३ -- १०)
अर्थ --- जो काले रंग की लकड़ियां रहीं, वे काले रंग के पशु बने । अमिदाह से जो मिट्टी लाल रंग की हो गई थी उससे लाल रंग के पशु बन गये। जो राख बन गई थी. उससे कठोर शरीर बाल गौर रोज मृग ऊंट गईभ, आदि आरण्यक - जंगली पशु अन गये और जंगल में फिरने लगे।
पुराण की प्रलय-प्रक्रिया किन्हीं अंशों में पृथक है । वह